Lesson-2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

NCERT Notes for CBSE/UP Class-10 Social Science, (Economic/अर्थशास्त्र) (आर्थिक विकास की समझ/aarthik vikas ki samjh) Chapter-2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक (Sectors of Indian Economy) Notes in hindi.

📚📚Lesson-2📚📚

🇮🇳भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक🇮🇳


आर्थिक क्रिया:- वे सभी क्रियाएँ जिनसे इंसान को धन प्राप्त होता है, उसे आर्थिक किया कहते है। जैसे- खेती करना, नौकरी करना आदि। आर्थिक क्रिया तीन प्रकार की होती है।
1.प्राथमिक क्षेत्रक
2.द्वितीयक क्षेत्रक
3.तृतीयक क्षेत्रक

1.प्राथमिक क्षेत्रक:- वह क्षेत्रक जिसमे प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करके वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, प्राथमिक क्षेत्रक कहलाता है। इसे कृषि व सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है। उदाहरण :- कृषि, खनन, मत्स्य पालन आदि ।

2.द्वितीयक क्षेत्रक:- वह क्षेत्रक जिसमे प्राथमिक क्षेत्रक से प्राप्त वस्तुओं को लेकर नई वस्तुओं का विनिर्माण किया जाता है, द्वितीयक क्षेत्रक कहलाता है। इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहते हैं। जैसे- कपास से कपड़े बनाना, लकड़ी से कागज बनाना आदि। 

3.तृतीयक क्षेत्रक:- तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक के उत्पादन गतिविधियों में सहायता करता है। इसे सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं। उदाहरण :- बैंकिंग, परिवहन आदि। 
सेवा क्षेत्रक में उत्पादन सहायक गतिविधियों के अतिरिक्त अन्य सेवाएं भी हो सकती हैं। जैसे : डॉक्टर, वकील आदि की सेवा, कॉल सेंटर, सॉफ्टवेयर विकसित करना आदि। 

सकल घरेलू उत्पादक(GDP):- किसी विशेष वर्ष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पाद अंतिम वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य उस वर्ष में देश के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है। तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पादक कहते हैं।

तीनों आर्थिक क्षेत्रकों में ऐतिहासिक बदलाव:-
• 1972 में स्वतंत्रता के बाद भारतीय GDP में प्राथमिक क्षेत्र प्रमुख था। जैसे- जैसे कृषि पद्धति में सुधार होता है और अधिशेष भोजन का उत्पादन होता है, लोगों ने अपनी ऊर्जा को विनिर्माण की दिशा में चैनलाइज किया।
• बहुत जल्द ही द्वितीयक क्षेत्रक को प्रमुखता मिली
• प्राकृतिक और द्वितीयक क्षेत्र के विकास के कारण, सूचना और प्रौद्योगिकी, व्यापार, परिवहन आदि, तृतीयक क्षेत्रक को प्रमुखता मिली।

उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक का बढ़ता महत्व:- भारत में पिछले चालीस वर्षों में सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्रक में हुई है। इस तीव्र वृद्धि के कई कारण है जैसे सेवाओं का समुचित प्रबंधन, परिवहन भंडारण की अच्छी सुविधाएँ व्यापार का अधिक विकास शिक्षा की उपलब्धता आदि किसी भी देश में अनेक सेवाओं जैसे अस्पताल परिवहन बैंक डाक तार आदि की आवश्यकता होती है। आय बढ़ने से कई सेवाओं जैसे रेस्तरा, पर्यटन, शापिंग निजी अस्पताल तथा विद्यालय आदि की मांग शुरू कर देते है। 

प्रच्छन्न बेरोज़गारी (छिपी हुई बेरोजगारी) की समस्या:- इसे अल्प बेरोजगारी भी कहते हैं। वह परिस्थिति जिसमे व्यक्ति काम मे लगे हुए दिखाई देते है किंतु वास्तव में बेरोजगार होते है जैसे भूमि की किसी टुकड़े पर आठ लोग काम कर रहे है किंतु उत्पादन उतना ही हो रहा है जितना पाँच लोग के काम करने से होता है ऐसे मे तीन अतिरिक्त व्यक्ति जो काम मे लगे हैं वह छिपे हुए बेरोजगार है क्योंकि उनके काम से उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। कृषि क्षेत्र में अल्प बेरोजगारी की समस्या अधिक है। 

ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम 2005 (NREGA):- केंद्र सरकार ने भारत के लगभग 625 जिलों में "काम का अधिकार" लागू करने के लिए एक कानून बनाया जिसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (MNREGA) भी कहते हैं। 
राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी अधिनियम के प्रावधान:- 
• राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी योजना के अर्न्तर्गत 100 दिनों के रोज़गार की गारन्टी। 
• रोजगार न मिलने या कम मिलने पर बेरोज़गारी भत्ता दिया जाना। 
• एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए सुरक्षित है
• गरीबों में भी अति गरीब लोगों को रोजगार प्रदान करना। 

सार्वजनिक क्षेत्र:- इसमे उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी सेवाएँ उपलब्ध करवाती है। सार्वजनिक क्षेत्र का लक्ष्य लाभ कमाना नही होता बल्कि सेवा उपलब्ध करना होता है। जैसे- रेलवे, बैंक, डाक सेवा आदि। 

निजी क्षेत्र:- वह क्षेत्र जिसमें परिसम्पत्तियों का स्वामित्व और सेवाओं का वितरण एक व्यक्ति या कम्पनी के हाथों में होती है।इनका लक्ष्य केवल लाभ कमाना होता है। इनकी सेवाओ को प्राप्त करने के लिए हमे पैसे का भुगतान करना पड़ता है। जैसे- टाटा आयरन स्टील कम्पनी, रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड आदि। 

संगठित क्षेत्रक:- इसमें वे उद्यम या कार्य आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि निश्चित होती है। ये सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं तथा निर्धारित नियमों व विनियमों का अनुपालन करते हैं । 

संगठित क्षेत्र के कर्मचारी को प्राप्त लाभ:- 

🔹काम के निश्चित घंटे होंगे। 
🔹निश्चित समय से अधिक काम करने पर अतिरिक्त आय प्राप्त होगी।
🔹चिकित्सा सुविधाएँ व पेंशन सुविधा मिलेगी
🔹सवेतन अवकाश, भविष्य निधि का सेवानुदान मिलेगा।
🔹कार्य स्थल पर उचित वातावरण व न्यूनतम सुविधाएँ प्राप्त होंगी।
🔹अनुचित शोषण नहीं होगा। 

असंगठित क्षेत्रक:- छोटी छोटी और बिखरी हुई ईकाइयाँ जो अधिकाशतः सरकार के नियंत्रण से बाहर रहती है। यहाँ प्रायः सरकारी नियमों का पालन नहीं किया जाता। इस क्षेत्रक मे रोजगार अनिश्चित होता है। 
असंगठित क्षेत्रक में मज़दूरों के सामने आने वाली कठिनाइयाँ:- 
• यह क्षेत्रक सरकारी नियमों व विनियमों को नहीं मानता ।
• न्यूनतम वेतन मिलता है।
• रोजगार की अवधि व कार्य समय सीमा निश्चित नहीं होती।
• किसी प्रकार की छुट्टी या लाभ का प्रावधान नहीं होता ।
संगठित व असंगठित क्षेत्रकों में अंतर:-



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