Lesson-2 संघवाद(federalism)

UP/NCERT Notes for CBSE/UP Class 10 Social Science/Civies(लोकतांत्रिक राजनीति -2),Lesson-2, federalism(संघवाद)
 

 लोकतांत्रिक राजनीति - 2 

Class-10th, Civies, chapter-2, federalism Notes in Hindi

📚अध्याय-2📚

🇮🇳संघवाद(federalism)🇮🇳

🏵संघवाद:- संघवाद से अभिप्राय है कि एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें देश की सर्वोच्च सत्ता केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच  बंटी होती है। साधारण शब्दों में कहें तो संघवाद संगठित रहने का विचार है।   (संघ = संगठन, वाद = विचार )

🏵संघीय शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ :- 

1. संघीय व्यवस्था में सत्ता केन्द्रीय सरकार और अन्य सरकारों में बंटी होती है।
2. केंद्र सरकार राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर कानून बनाती है और राज्य सरकारें राज्य से संबंधित विषयों पर ।
3. दोनों स्तर की सरकारें अपने अपने स्तर पर स्वतंत्र होकर अपना काम करती हैं।
4. संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर की सरकारें होती हैं।
5. अलग अलग स्तर की सरकार द्वारा एक ही नागरिक समूह पर शासन होता है।
6. सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित हैं। 
7. संविधान के मौलिक प्रावधानों में बदलाव का अधिकार दोनों स्तरों की सरकारों की सहमति से ही संभव होता है।
8. अदालतों को संविधान और सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार ।
9. वित्तीय स्वायत्तता के लिए राजस्व के अलग अलग स्त्रोत निर्धारित हैं। 

🏵संघवाद के प्रकार:-1. साथ आकर संघ बनाना 
2. साथ लेकर संघ बनाना।
 

1. साथ आकर संघ बनाना:- दो या अधिक स्वतंत्र इकाइयों को साथ लेकर एक बड़ी इकाई का गठन होता हैं।सभी स्वतंत्र राज्यों की सत्ता एक समान होती है। इसमे राज्य अधिक शक्तिशाली होता है। जैसे- ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका।

2. साथ लेकर संघ बनाना :- एक बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन। इसमे केन्द्र अधिक शक्तिशाली होता है। जैसे-भारत, जापान।

🏵एकात्मक शासन व्यवस्था:-

🔸इसमें केन्द्र सरकार शक्तिशाली होती है।
🔸इसके अंतर्गत संविधान संशोधन केन्द्र सरकार कर सकती है।
🔸शक्तियाँ एक जगह पर केंद्रित होती हैं।
🔸इसमें एक ही नागरिकता होती है।
🔸 केन्द्र सरकार राज्यों से शक्तियाँ ले सकती हैं।

🏵संघात्मक शासन व्यवस्था :- 

🔸इसमें केन्द्रीय सरकार अपेक्षाकृत कमजोर होती है।
🔸इसमें केन्द्र सरकार अकेले संविधान संशोधन नहीं कर सकती है। 
🔸शक्तियाँ कई स्तरों पर विभाजित होती हैं।
🔸कई संघीय व्यवस्था वाले देशों में दोहरी नागरिकता होती है।
🔸 दोनों स्तर की सरकारें अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं।

🏵भारत में संघीय व्यवस्था:- भारतीय संविधान ने यहां की सरकार को एक संघात्मक रूप प्रदान किया है। यहाँ विकेंद्रीकरण के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं 
संविधान ने मौलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था। संघ सरकार और राज्य सरकारें। केन्द्र सरकार को पूरे भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करना था। बाद में पंचायत और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया। भारत में संघीय शासन व्यवस्थाओं के अपने अलग-अलग अधिकार क्षेत्र है। 

🏵भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा :-  संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों को तीन हिस्से में बाँटा गया है। ये तीन सूचियाँ इस प्रकार हैं। 1.संघ सूची 2.राज्य सूची 3.समवर्ती सूची। 

1. संघ सूची :- संघ सूची में वर्णित विषयों के बारे में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को हैं। संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय है।

2. राज्य सूची :- राज्य सूची में वर्णित विषयों के बारे में सिर्फ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है। राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई जैसे प्रांतीय और स्थानीय महत्व के विषय है।

3. समवर्ती सूची:- इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार, दोनों को ही है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केन्द्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है। इसमें शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे वे विषय आते हैं।
Note- वे विषय जो ऊपर के तीन सूचियों में नहीं हैं। उन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को है।

🏵केंद्र शासित प्रदेश:- भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है। इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है। इन्हें केंद्र शासित प्रदेश कहते हैं। ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं। उदाहरण: दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार आदि। 

🏵भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता के कारण:-

1. भाषायी राज्य:- भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन किया गया। यह हमारे देश की पहली और एक कठिन परीक्षा थी। कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर ही नहीं बल्कि संस्कृति, भूगोल व विविधता को रेखांकित एवं महत्त्व देने के लिए किया गया।

2. भारत की भाषा नीति:- भारत के संघीय ढाँचे की दूसरी परीक्षा भाषा नीति को लेकर हुई। भारत में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा न देकर हिंदी और अन्य 21 भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है। हिंदी को राजभाषा माना गया। 

3. केंद्र और राज्य के रिश्ते:- केंद्र और राज्य के बीच के रिश्तों के पुनर्गठन से हमारी संघीय व्यवस्था को और बल मिला है।

🏵अनुसूचित भाषाएँ :- वे 22 भाषाएँ जिन्हें भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा गया है उन्हें अनुसूचित भाषाएँ कहते हैं।

🏵विकेन्द्रीकरण:- जब केन्द्र और राज्य सरकार से शक्तियां लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेंद्रीकरण कहते हैं।

🏵भारत में विकेंद्रीकरण:- भारत एक विशाल देश है। जहाँ दो स्तरों वाली सरकार से काम चलाना बहुत मुश्किल काम है । भारत के कुछ राज्य तो यूरोप के कई देशों से भी बड़े हैं। जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश तो रूस से भी बड़ा है।1992 में विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। संविधान में संशोधन किया गया ताकि लोकतंत्र के तीसरे स्तर को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाया जा सके। स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

🏵पंचायती राज:- गांव के स्तर पर स्थानीय शासन पंचायती राज कहलाता है। हर गाँव में एक ग्राम पंचायत होती है। पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं।
दिसम्बर 1992 में भारतीय संसद ने संविधान के 73 वें एवं 74 वें संशोधनों को मंजूरी प्रदान की । इसके तहत भारत में स्थानीय स्वशासन निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया एवं भारत में पंचायती राज व्यवस्था मजबूत बनाया गया।

🏵पंचायत समिति:- कई ग्राम पंचायत मिलकर पंचायत समिति का गठन करती हैं । इसके सदस्यों का चुनाव उस इलाके के सभी पंचायत सदस्य करते हैं।

🏵जिला परिषद:- किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद् का गठन होता है। जिला परिषद के अधिकांश सदस्यों का चुनाव होता है। जिला परिषद का राजनैतिक मुखिया जिला परिषद का अध्यक्ष होता है। 

🏵नगर निगम:- इस प्रकार स्थानीय शासन वाली संस्थाएँ शहरों में भी काम करती है। छोटे शहरों में नगर पालिका होती है। बड़े शहरों में नगरनिगम का गठन होता है
नगरपालिका प्रमुख नगरपालिका के राजनीतिक प्रधान होते है। नगरनिगम के ऐसे पदाधिकारी को मेयर कहते हैं।


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