संविधान की महत्वपूर्ण शब्दावलियां
शून्यकाल- संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल के ठीक बाद के समय को शून्य काल कहा जाता है।
यह 12 बजे प्रारम्भ होता है और एक बजे दिन तक चलता है ।
इस काल अर्थात् 12 बजे से 1 बजे तक के समय को शून्यकाल का नाम समाचारपत्रों द्वारा दिया गया
इस काल के दौरान सदस्य अविलम्बनीय महत्व के मामलों को उठाते हैं तथा उस पर तुरंत कार्यवाही चाहते हैं ।
नोट- वर्तमान में शून्य काल 1 बजे से 2 बजे तक चलता है ।
विघटन- विघटन केवल लोकसभा का ही हो सकता है इसमें लोकसभा का अंत हो जाता है।
सदन का स्थगन- इसके द्वारा सदन के काम - काज को विनिर्दिष्ट समय के लिए स्थगित कर दिया जाता है तथा यह कुछ घण्टे , कुछ दिन या सप्ताह का भी हो सकता है , जबकि सत्रावसान द्वारा सत्र की समाप्ति होती है ।
अनुपूरक प्रश्न- सदन में किसी सदस्य द्वारा अध्यक्ष की अनुमति से किसी विषय , जिसके सम्बन्ध में उत्तर दिया जा चुका है, उसके स्पष्टीकरण हेतु अनुपूरक प्रश्न पूछने की अनुमति प्रदान की जाती है ।
तारांकित प्रश्न- जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य तुरंत सदन में चाहता है उसे तारांकित प्रश्न कहा जाता है। तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाता है तथा तारांकित प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं ।
अतारांकित प्रश्न- यह ऐसे प्रश्न होते है जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य लिखित चाहता है । ऐसे प्रश्नो का उत्तर सदन में नहीं दिया जाता और इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी नहीं पूछे जाते ।
स्थगन प्रस्ताव- इस प्रस्ताव को पेश करने के लिए न्यूनतम पचास सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक है। स्थगन प्रस्ताव पेश करने का मुख्य उद्देश्य किसी अविलम्बनीय लोक महत्व के मामले की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करना है । जब इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है , तब सदन अविलम्बनीय लोक महत्व के निश्चित मामले पर चर्चा करने के लिए सदन का नियमित कार्य रोक देता है ।
संचित निधि- इसके बारे में प्रावधान (संचित निधि) संविधान के अनुच्छेद 266 में किया गया है।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक आदि के वेतन तथा भत्ते इस निधि पर भारित होते हैं।
संचित निधि से धन संसद में प्रस्तुत अनुदान माँगों के द्वारा ही व्यय किया जाता है । राज्यों को करों एवं शुल्कों में से उनका अंश देने के बाद जो भी धन शेष बचता है , वह इस संचित निधि में डाल दिया जाता है ।
आकस्मिक निधि- संविधान के अनुच्छेद 267 के अनुसार भारत सरकार एक आकस्मिक निधि की स्थापना करेगी। इसमें जमा धनराशि का व्यय विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किया जाता है । संसद की स्वीकृति के बिना इस मद से धन नहीं निकाला जा सकता है । विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति अग्रिम रूप से इस निधि से धन निकाल सकते हैं ।
अल्पकालीन चर्चाएँ- भारत में इस प्रथा की शुरुआत 1953 ई . के बाद हुई । इसमें लोक महत्व के प्रश्न पर सदन का ध्यान आकर्षित किया जाता है ।
लेखानुदान- अनुच्छेद 116 ( क ) के अन्तर्गत लोकसभा लेखा - अनुदान ( Vote on Account ) पारित कर सरकार के लिए एक अग्रिम राशि मंजूर की जा सकती है , जिसके बारे में वार्षिक वित्तीय विवरण देना सरकार के लिए सम्भव नहीं है ।
सामूहिक उत्तरदायित्व- अनुच्छेद-75(3) के अनुसार मंत्री परिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।
अविश्वास प्रस्ताव- यह वह प्रस्ताव है जो सदन में विपक्षी दल के किसी भी सदस्य द्वारा रखा जा सकता है।
तथा इस तरह के प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक होता है।
प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के 10 दिन के अंदर इस पर चर्चा होना भी आवश्यक है।
तथा इस तरह के प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक होता है।
प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के 10 दिन के अंदर इस पर चर्चा होना भी आवश्यक है।
अध्यादेश- राष्ट्रपति या राज्यपाल संसद अथवा विधान मंडल के सत्तावान की स्थिति में आवश्यक विषयों से संबंधित अध्यादेश का प्रख्यापन करते है। अध्यादेश में निहित विधि संसद अथवा विधान मंडल के अगले सत्र की शुरुआत के छह सप्ताह के बाद प्रवर्तन योग्य नहीं रह जाती यदि संसद अथवा विधान मंडल द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है ।
धन्यवाद प्रस्ताव- राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद की कार्यमंत्रणा समिति की सिफारिश पर तीन-चार दिनों तक धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होती है।
विश्वास प्रस्ताव- बहुमत का समर्थन प्राप्त होने में संदेह होने की स्थिति में सरकार द्वारा लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव लाया जाता है
विश्वास प्रस्ताव के पारित न होने की दशा में सरकार को त्यागपत्र देना आवश्यक हो जाता है।
विश्वास प्रस्ताव के पारित न होने की दशा में सरकार को त्यागपत्र देना आवश्यक हो जाता है।
निन्दा प्रस्ताव- निन्दा प्रस्ताव मंत्रिपरिषद् अथवा किसी एक मंत्री के विरुद्ध उसकी विफलता पर खेद अथवा रोष व्यक्त करने के लिए किया जाता है । निन्दा प्रस्ताव में निन्दा के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक होता है । निन्दा प्रस्ताव नियम के अनुसार है या नहीं , इसका निर्णय अध्यक्ष करता है ।
बैंक बेंचर(Back Bencher)- सदन में आगे के स्थान प्राय मंत्रियों , संसदीय सचिवों तथा विरोधी दल के नेताओं के लिए आरक्षित रहते हैं । गैर सरकारी सदस्यों के लिए पीछे का स्थान नियत रहता है । अतः बैक बेंचर उन्हीं सदस्यों को कहा जाता है जो पीछे बैठने हैं ।
काकस- किसी राजनीतिक दल अथवा गुट के प्रमुख सदस्यों की बैठक को काकस कहते हैं।
त्रिशंकु संसद- इस तरह की संसद का गठन तब होता है जब आम चुनाव में किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट रूप से बहुमत न मिले। त्रिशंकु संसद की स्थिति में दल - बदल जैसे कुप्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है । देश में नौवी, दसवीं, ग्यारहवीं एवं बारहवीं लोकसभा की यही स्थिति रही ।
नियम 193- इस नियम के अंतर्गत सदस्य अत्यावश्यक एवं अविलम्बनीय विषय पर तुरंत अल्पकालिक चर्चा की माँग कर सकते हैं । यह नियम 1953 ई . में बनाया गया था ।
न्यायिक पुनर्विलोकन- भारत में न्यायपालिका को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है।
न्यायिक पुनर्विलोकन के अनुसार न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि विधान मंडल द्वारा पारित की गयी विधियाँ अथवा कार्यपालिका द्वारा दिये गये आदेश संविधान के प्रतिकूल हैं , तो वे उन्हें निरस्त घोषित कर सकते हैं ।
न्यायिक पुनर्विलोकन के अनुसार न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि विधान मंडल द्वारा पारित की गयी विधियाँ अथवा कार्यपालिका द्वारा दिये गये आदेश संविधान के प्रतिकूल हैं , तो वे उन्हें निरस्त घोषित कर सकते हैं ।
गणपूर्ति- सदन में किसी बैठक के लिए गणपूर्ति अध्यक्ष सहित कुल सदस्य संख्या का दसवाँ भाग होती है । बैठक शुरू होने के पूर्व यदि गणपूर्ति नहीं है तो गणपूर्ति घंटी बजाई जाती है । अध्यक्ष तभी पीठासीन होता है , जब गणपूर्ति हो जाती है ।
प्रश्नकाल- दोनों सदनों में प्रत्येक बैठक के प्रारंभ के एक घंटे तक प्रश्न किए जाते हैं और उनके उत्तर दिए जाते है। इसे प्रश्नकाल कहाँ जाता है।
दबाव समूह- व्यक्तियों के ऐसे समूह जिनके हित सामान होते हैं दबाव समूह कहे जाते हैं।
ये हित के लिए शासन - तंत्र पर विभिन्न प्रकार से दबाव बनाते हैं ।
ये हित के लिए शासन - तंत्र पर विभिन्न प्रकार से दबाव बनाते हैं ।
वित्त विधेयक- संविधान का अनुच्छेद-112 वित्त विधेयक को परिभाषित करता है।
जिन वित्तीय प्रस्तावों को सरकार आगामी वर्ष के लिए सदन में प्रस्तुत करती है , उन वित्तीय प्रस्तावों को मिलाकर वित्त विधेयक की रचना होती है । सामान्यतः वित्त विधेयक उस विधेयक को कहते हैं , जो राजस्व या व्यय से सम्बन्धित होता है । संसद में प्रस्तुत सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं हो सकते ।
जिन वित्तीय प्रस्तावों को सरकार आगामी वर्ष के लिए सदन में प्रस्तुत करती है , उन वित्तीय प्रस्तावों को मिलाकर वित्त विधेयक की रचना होती है । सामान्यतः वित्त विधेयक उस विधेयक को कहते हैं , जो राजस्व या व्यय से सम्बन्धित होता है । संसद में प्रस्तुत सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं हो सकते ।
धन विधेयक- संसद में राजस्व एकत्र करने अथवा अन्य प्रकार से धन से संबध्द विधेयक को धन विधेयक कहते हैं।
संविधान के अनुच्छेद-110(1) के उपखंड (क) से (घ)
तक में उल्लिखित विषयों से संबंधित विधेयकों को धन विधेयक कहा जाता है।
यह एक ऐसा विधेयक है जिसे केवल लोकसभा में ही पेश किया जाता है।
संविधान के अनुच्छेद-110(1) के उपखंड (क) से (घ)
तक में उल्लिखित विषयों से संबंधित विधेयकों को धन विधेयक कहा जाता है।
यह एक ऐसा विधेयक है जिसे केवल लोकसभा में ही पेश किया जाता है।
पंगू सत्र- एक विधान मंडल के कार्यकाल की समाप्ति तथा दूसरे विधान मंडल के कार्यकाल की शुरुआत के बीच के काल में संपन्न होने वाले सत्र को पंगु सत्र कहा जाता है।
यह व्यवस्था केवल अमेरिका में है।
यह व्यवस्था केवल अमेरिका में है।
सचेतक- राजनीतिक दल में अनुशासन बनाये रखने के लिए सचेतक की नियुक्ति प्रत्येक संसदीय दल द्वारा की जाती है । किसी विषय - विशेष पर मतदान होने की स्थिति में सचेतक अपने दल के सदस्यों को मतदान विषयक निर्देश देता है । सचेतक के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करने वाले सदस्य के विरुद्ध दल - बदल निरोध कानून के अन्तर्गत कार्यवाही की जाती है ।
➤Important link ▼
इन्हें भी पड़े -▼
1 टिप्पणियाँ
Nice post
जवाब देंहटाएंThanks for comment