स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में विकास
क्या आप जानते है कि राष्ट्रभाषा किसे कहते है? भारत मे हिंदी राष्ट्रभाषा का विकास कैसे हुआ?हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए किन किन लोगों ने योगदान दिया? अगर आपको इन सबके बारे में जानना है तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पढे क्योकि इस पोस्ट में इन सभी प्रश्नो के उत्तर दिए गए है। पोस्ट के बारे में आपके जो भी प्रतिक्रिया हो आप कमेन्ट में बता सकते है।
राष्ट्रभाषा क्या है?:- राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है पूरे राष्ट्र में प्रयोग की जाने वाली भाषा अर्थात आम जन की भाषा (जनभाषा) जो भाषा पूरे राष्ट्र में लोगों के विचार के आदान प्रदान का माध्यम हो, वह राष्ट्र भाषा कहलाती है ।वैसे तो सभी भाषाएं राष्ट्र भाषाएं होती हैं किंतु राष्ट्र की जनता जब स्थानीय एवं तात्कालिक हीतो वह पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की कई भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय अस्मिता का एक आवश्यक उपादान समझने लगती है तो वही राष्ट्रभाषा है।स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है। भारत के संदर्भ में इस आवश्यकता की पूर्ति हिंदी ने किया यही कारण है कि हिंदी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान (1900-1947ई.) राष्ट्रभाषा बनी।
राष्ट्रभाषा सामाजिक सांस्कृतिक मान्यताओं-परंपराओं के द्वारा सामाजिक सांस्कृतिक स्तर पर देश को जोड़ने का काम करती है अर्थात राष्ट्रभाषा की प्राथमिक शर्त देश में विभिन्न समुदायों के बीच भावनात्मक एकता स्थापित करना है। राष्ट्रभाषा सारे देश की संपर्क भाषा होती है तथा विस्तृत और देशव्यापी होता है, इसका व्यापक जनाधार होता है या जनता के आधार पर होता है।राष्ट्रभाषा हमेशा स्वभाषा ही हो सकती है क्योंकि उसी के साथ जनता भावनात्मक रूप से जुड़ी होती है।
1.- अंग्रेजों का योगदान:- जब जनता सरकार के बीच संवाद स्थापना के क्रम में फ़ारसी या अंग्रेजी के माध्यम से दिक्कतें आने लगी तो कंपनी सरकार ने फोर्ट विलियम कॉलेज में हिंदुस्तानी विभाग खोलकर अधिकारियों को हिंदी सिखाने की व्यवस्था की। यहां से हिंदी पड़े हुए अधिकारियों ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में इसका प्रत्यक्ष लाभ देकर मुक्त कंठ से हिंदी को सराहा।
विलियम केरी ने 1816ई. में लिखा है:- "हिंदी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं बल्कि देश में हर जगह बोली जाने वाली भाषा है।"
2.- धर्म समाज सुधारकों का योगदान :-
धर्म समाज सुधार प्राय: सभी संस्थाओं ने हिंदी के महत्व को भाँँपा और हिंदी की हिमायत की।
⏺️ब्रह्म समाज(1828ई.) के संस्थापक राजा राममोहन राय ने कहा: "इस समग्र देश की एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है"। एक अन्य ब्रह्मसमाजी नवीन चंद्र राय ने पंजाब में हिंदी के विकास के लिए बहुमूल्य योगदान दिया।
⏺️आर्य समाज (1875ई.) के संस्थापक दयानंद सरस्वती गुजराती भाषी थे, एवं गुजराती व संस्कृति भाषा के अच्छे जानकार थे, हिंदी का उन्हें सिर्फ कामचलाऊ ज्ञान था, पर अपनी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए, अपनी रचनायें हिंदी में लिखी। उनका मानना था कि हिंदी के द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
⏺️थियोसोफिकल सोसायटी(1882ई.) की संचालिका ऐनी बेसेंट ने कहा था:- "भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न भागों में जो अनेक देसी भाषाएं बोली जाती है उनमें एक भाषा ऐसी है जिसमें सब भाषाओं की अपेक्षा एक भारी विशेषता है वह यह कि उसका प्रचार सबसे अधिक है वह भाषा हिंदी है।
3.- कांग्रेस के नेताओं का योगदान:-
⏺️1850 ईस्वी में कांग्रेस की स्थापना हुई जैसे-जैसे कांग्रेस का राष्ट्रीय आंदोलन जोर पकड़ता गया वैसे-वैसे राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय झंडा एवं राष्ट्र भाषा के प्रति आग्रह बढ़ता गया।
⏺️महात्मा गांधी राष्ट्र के लिए राष्ट्रभाषा को नितांत आवश्यक मानते थे। उनका कहना था: 'राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है"। गांधीजी हिंदी के प्रश्न को स्वराज का प्रश्न मानते थे।
जैसे-जैसे स्वतंत्रता-संग्राम तीव्रतर होता गया वैसे-वैसे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का आंदोलन जोर पकड़ता गया। बीसवीं सदी के चौथे दशक तक हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में आम सहमति प्राप्त कर चुकी थी वर्ष 1942 से 1945 का समय ऐसा था जब देश में स्वतंत्रता की लहर सबसे अधिक तीव्र थी, तब राष्ट्रभाषा से ओतप्रोत जितनी रचनायें हिंदी में लिखी गई उतनी शायद किसी और भाषा में इतने व्यापक रूप से कभी नहीं लिखी गई। राष्ट्रभाषा के प्रचार के साथ राष्ट्रीयता के प्रबल हो जाने पर अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।
1 टिप्पणियाँ
Very nice explanation
जवाब देंहटाएंThanks for comment