Lesson-8, जवानी

UP Board Class-10 Hindi( काव्य/पद्य खण्ड) Lesson-8 जवानी, कवि- माखनलाल चतुर्वेदी [ संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्यगत सौन्दर्य, शब्दार्थ] exam oriented.Part-2


✍Chapter-8✍

🌺जवानी🌺

👮‍♀️माखनलाल चतुर्वेदी👮‍♀️

👮हिंदी(काव्य-खण्ड)👮

🎯Part-2🎯


जवानी

प्रश्न 1.
प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी। 
कौन कहता है कि तू 
विधवा हुई, खो आज पानी ? 
चल रही घड़ियाँ, चले नभ के सितारे, 
चल रही नदियाँ, चले हिम-खण्ड प्यारे; 
चल रही है साँस, फिर तू ठहर जाये ? 
दो सदी पीछे कि तेरी लहर जाये ? 
पहन ले नर-मुंड माला
उठ स्वमुंड सुमेरु कर ले, 
भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी
प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!(2018)

सन्दर्भ:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी के काव्य-खण्ड में संकलित और श्री माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित 'जवानी' कविता से उद्धृत है। यह कविता श्री चतुर्वेदी जी के संग्रह 'हिमकिरीटिनी' से ली गयी है।

व्याख्या-: अरी युवकों की पागल जवानी! तू अपने भीतर उत्साह एवं शक्तिरूपी प्राणों को समेटे है। कौन कहता है कि तूने अपना तेज रूपी पति खो दिया है और तू विधवा होकर तेजहीन हो गयी हैं? घड़ियाँ अर्थात् समय निरन्तर चल रहा है। आसमान के सितारे भी गतिमान हैं। नदियाँ निरन्तर प्रवाहमान हैं और पहाड़ों पर बर्फ के टुकड़े सरक सरक कर अपनी गति का प्रदर्शन कर रहे हैं। प्राणिमात्र की साँसें भी निरन्तर चल रही हैं। इस सर्वत्र गतिशील वातावरण में ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है कि तू ठहर जाये ? 
इस गतिमान समय में यदि तू ठहर गयी और तुझमें गति का ज्वार-भाटा न आया तो तू दो शताब्दी पिछड़ जाएगी अर्थात् जवानी के अलसा जाने पर देश की प्रगति दो शताब्दी पिछड़ जाएगी।
हे नवयुवकों की जवानी ! तू उठ और दुर्गा की भाँति मनुष्यों के मुण्डों की माला पहन ले। नरमुण्डों की इस माला में तू अपने सिर को सुमेरु बना, अर्थात् बलिदान के क्षेत्र में तू सर्वोपरि बन । यदि आज समर्पण की आवश्यकता पड़े तो तू उससे पीछे मत हट। जिस प्रकार लहलहाते हुए धानों की हरियाली में धरती का जीवन झलकता है, ऐसे ही हे जवानी, तू भी उत्साह में भरकर धानी चूनर ओढ़ ले।

प्रश्न 2.
द्वार बलि का खोल चल भूडोल कर दें 
एक हिमगिरि एक सिर का मोल कर दें, 
मसल कर, अपने इरादों-सी, उठा कर, 
दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दें? 
रक्त है ? या है नसों में क्षुद्र पानी ! 
जाँच कर, तू सीस दे देकर जवानी ? [2016, 18]

व्याख्या-: चतुर्वेदी जी कहते हैं कि हे युवको! तुम अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने की परम्परा का द्वार खोलकर इस धरती को हिला दो और हिमालय के एक- एक कण के लिए एक-एक सिर समर्पित कर दो।
हे नौजवानो! तुम्हारे संकल्प बहुत ऊँचे हैं जिन्हें पूर्ण करने के लिए तुम्हारे पास दो हथेलियाँ हैं। अपनी उन हथेलियों को अपने ऊँचे संकल्पों के समान उठाकर तुम पृथ्वी को गोल कर सकते हो; अर्थात् बड़ी-बड़ी बाधा को हटा सकते हो।
हे वीरो! तुम अपनी युवावस्था की परख अपने शीश देकर कर सकते हो। इस बलिदानी परीक्षण से तुम्हें यह भी ज्ञात हो जाएगा कि तुम्हारी धमनियों में शक्तिशाली रक्त दौड़ रहा है अथवा उनमें केवल शक्तिहीन पानी ही भरा हुआ है।

प्रश्न 3.
वह कली के गर्भ से फल रूप में, अरमान आया ! 
फल दिये? या सिर दिये तरु की कहानी 
देखें तो मीठा इरादा, किस तरह, सिर तान आया । 
डालियों ने भूमि रुख लटका दिया फल देख आली ! 
मस्तकों को दे रही संकेत कैसे, वृक्ष-डाली![2016]
गॅथकर युग में, बताती चल जवानी !

व्याख्या-: हे युवाओ! फल के भार से लदे हुए वृक्षों की ओर देखो। वे पृथ्वी की ओर अपना मस्तक झुकाये हुए हैं। कली के भीतर से झाँकते फल कली के अरमानों को बता रहे हैं। यह तो बहुत ही प्यारा संकल्प है, इसीलिए पुष्प-कली गर्व से सिर उठाये हुए हैं। जब फल पक गये, तब डालियों ने पृथ्वी की ओर सिर झुका दिया है। अब ये फल दूसरों के लिए अपना बलिदान करेंगे। हे मित्र नौजवानो! वृक्षों की ये शाखाएँ तुम्हें संकेत दे रही हैं कि औरों के लिए मर-मिटने को तैयार हो जाओ। वृक्षों ने फल के रूप में अपने सिर बलिदान हेतु दिये हैं। तुम भी अपना सिर देकर वृक्षों की इस बलिदान-परम्परा को अपने जीवन में उतारो, आचरण में ढालो और युग की आवश्यकतानुसार स्वयं को उसकी प्रगतिरूपी माला में गूंथते हुए आगे बढ़ते रहो।

प्रश्न 4.
श्वान के सिर हो-चरण तो चाटता है! 
भौंक - क्या सिंह को वह डाँटता है? 
रोटियाँ खायीं कि साहस खो चुका है, 
प्राणि हो, पर प्राण से वह जा चुका है। 
तुम न खेलो ग्राम सिंहों में भवानी ! 
विश्व की अभिमान मस्तानी जवानी !

व्याख्या-: कवि कहता है कि कहने को सिर तो कुत्ते का भी होता है, पर उसमें स्वाभिमान तो नहीं होता । वह तो अपनी क्षुधापूर्ति के लिए दूसरों की चाटुकारी करता फिरता है और उनके पैरों को चाटता रहता है। कुत्ता चाहे कितना ही जोर से भौंक ले, किन्तु उसमें इतना साहस ही नहीं होता कि उसके भौंकने से सिंह डर जाए; क्योंकि दूसरे की रोटियाँ खाते ही उसका स्वाभिमान नष्ट हो जाता है। इस प्रकार जीवित होने पर भी वह मरे हुए के समान हो जाता है; अतः हे देश के शक्तिस्वरूप नवयुवको! तुम्हें अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी है और पराधीन नहीं रहना है। कुत्तों की भाँति रोटी के टुकड़ों के लिए अपने स्वाभिमान को नहीं खोना है। तुम्हें अपनी प्रचण्ड दुर्गा जैसी असीम शक्ति को आपसी झगड़ों में नष्ट नहीं करना है, अपितु उसे देश के दुश्मनों के संहार में लगाना है । तुम्हारी ऐसी मस्तानी जवानी का सारी दुनिया लोहा मानती है।

प्रश्न 5.
ये न मग हैं, तव चरण की रेखियाँ हैं, 
बलि दिशा की अमर देखा-देखियाँ हैं। 
विश्व पर, पद से लिखे कृति लेख हैं ये, 
धरा तीर्थों की दिशा की मेख हैं ये ! 
प्राण-रेखा खींच दे उठ बोल रानी, 
री मरण के मोल की चढ़ती जवानी ।

व्याख्या-: मेरे देश के नवयुवको! जिस मार्ग पर तुम चलते हो, वह कोई साधारण मार्ग नहीं है, अपितु तुम्हारे पूर्वजों द्वारा चरणों की रेखाओं से निर्मित आदर्श मार्ग हैं। यह मार्ग बलिदान का आदर्श मार्ग है, जिसको देखकर युगों-युगों तक लोग स्वयं ही बलिदान के लिए प्रेरित होते रहेंगे।
कवि कहता है कि इन बलिदान-पथों का निर्माण कर्मशील युवकों ने अपने सत्कार्यरूपी पदों से इन विश्व-मार्गो का निर्माण किया है; अतः ये कर्मशील युवकों के कर्म के लेख हैं, जो बलिदान के मार्ग पर चलने वाले युवकों का मार्गदर्शन करते हैं। ये बलिदान के मार्ग संसार के तीर्थों की दिशा बताने वाली कील (दिशासूचक) हैं। 
कवि अन्त में कहता है कि आज तू अपने प्राणों का बलिदान देकर विश्व के युवकों के लिए बलिदान की नयी रेखा खींच दे अर्थात् एक नया प्रतिमान बना दे। हे युवको! तुम उठो और संसार को बता दो कि जवानी की महत्ता देश के लिए मर-मिटने में ही है।

प्रश्न 6.
टूटता जुड़ता समय-भूगोल' आया, 
गोद में मणियाँ समेट 'खगोल' आया, 
क्या जले बारूद ? हिम के प्राण पाये ! 
क्या मिला? जो प्रलय के सपने में आये । 
धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे, 
चढ़ा दे स्वातन्त्र्य प्रभु पर अमर पानी ! 
विश्व माने-तू जवानी है, जवानी !

व्याख्या-: चतुर्वेदी जी कहते हैं कि हे युवको! समय हमेशा एक जैसा नहीं रहा। तुमने जब-जब क्रान्ति की है, तब-तब यह टूटा है और जुड़ा है अर्थात् नये-नये राष्ट्र बने हैं । तुम्हारी क्रान्ति का सत्कार करने के लिए ही यह ब्रह्माण्ड अनेक रंग-बिरंगे तारारूपी मणियों को अपनी गोद में लेकर प्रकट हुआ है। हे युवको! तुम्हें चाहिए कि तुम अपने जीवन की जगमगाहट से देश के गौरव को प्रकाशित करो, किन्तु जिनके हृदय बर्फ की तरह ठण्डे पड़ गये हैं, वे उसी प्रकार क्रान्ति नहीं कर सकते, जिस प्रकार कि ठण्डा बारूद नहीं जल सकता । हे युवको! तुम यदि प्रलय की भाँति पराधीनता और अन्याय के प्रति क्रान्ति नहीं कर सकते तो तुम्हारी जवानी व्यर्थ है। तुम चाहो तो पृथ्वी को भी तरबूज की तरह चीर सकते हो। हे देश के युवकों की जवानी ! तू यदि देश की आजादी के लिए अपना रक्तरूपी अमर पानी दे दे तो तू अमर हो जाएगी और संसार में तेरा उदाहरण देकर तुझे सराहा जाएगा। 

प्रश्न 7.
लाल चेहरा है नहीं-पर लाल किसके ? 
लाल खून नहीं ? अरे, कंकाल किसके ? 
प्रेरणा सोयी कि आटा-दाल किसके ? 
सिर न चढ़ पाया कि छापा-माल किसके ? 
वेद की वाणी कि हो आकाश वाणी, 
धूल है जो जम नहीं पायी जवानी। 

व्याख्या-: हे युवको! यदि तुम्हारे खून में लाली नहीं है अर्थात् देश के गौरव की रक्षा के लिए यदि तुममें बलिदान होने का उत्साह नहीं है तो तुम्हें भारतमाता का लाल नहीं कहा जा सकता। तुम्हारे रक्त में यदि लालिमा नहीं है, तो तुम्हारा अस्थि-पंजर देश के किस काम आएगा ? यदि देश पर बलिदान होने की तुम्हारी प्रेरणा सो गयी है तो तुम्हारे ये शरीर शत्रु के लिए आटा-दाल के रूप में भोज्य पदार्थ मात्र बनकर रह जाएँगे। तुम्हारे सिर की शोभा धार्मिक क्रिया-काण्डों के छापा- तिलक लगाने से या माला धारण करने से नहीं बढ़ेगी, वरन् देश पर बलिदान होने से बढ़ेगी। कवि पुनः कहता है कि जिस कविता से युवकों में उत्साह न जगाया जा सके, वह कविता भी निरर्थक है। भले ही वह पवित्र वेदों से उधृत हो अथवा स्वयं देवताओं के मुख से निकली आकाशवाणी हो।

प्रश्न 8.
विश्व है असि का नहीं संकल्प का है; 
हर प्रलय का कोण, कायाकल्प का है। 
फूल गिरते, शूल शिर ऊँचा लिये हैं, 
रसों के अभिमान को नीरस किये हैं। 
खून हो जाये न तेरा देख, पानी 
मरण का त्यौहार, जीवन की जवानी [2016, 18]

व्याख्या-: कवि नवयुवकों को क्रान्ति के लिए उत्तेजित करते हुए कहता है कि क्या यह संसार तलवार का है? नहीं, यह बात नहीं है । यह संसार दृढ़ निश्चय वाले व्यक्तियों का है। इसे उन्हीं के द्वारा ही जीता जा सकता है। प्रत्येक प्रलय का उद्देश्य संसार के अन्दर पूर्ण परिवर्तन (क्रान्ति) ला देना होता है।
जब व्यक्ति के अन्दर दृढ़ संकल्पों की कमी होती है तो उसका पतन हो जाता है। वायु के हल्के झोंके से ही फूल नीचे गिर जाते हैं और उनकी सुन्दरता नष्ट हो जाती है, लेकिन काँटे आँधी और तूफान में भी गर्व से अपना सिर उठाये खड़े रहते हैं। हे युवको! दृढ़ संकल्प से मर-मिटने की भावना उत्पन्न होती है। काँटे फूलों की कोमलता और सरसता के अभिमान को अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति से चकनाचूर कर देते हैं।
कवि जवानी को सम्बोधित करते हुए कहता है कि हे जवानी! उत्साह के नष्ट हो जाने से तेरा रक्त शीतल होकर कहीं पानी के रूप में परिवर्तित न हो जाये; अर्थात् तेरा जोश ठण्डा न पड़ जाये। जीवन में जवानी उसी का नाम है, जो मृत्यु को उत्सव समझे। जीवन में बलिदान का दिन ही जवानी का सबसे आनन्दमय दिन होता है।




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