Lesson-13, हल्दीघाटी

UP Board Class-10 Hindi( काव्य/पद्य खण्ड) Lesson-13, हल्दीघाटी, कवि- श्री श्यामनारायण पाण्डेय [संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्यगत सौन्दर्य, शब्दार्थ] exam oriented.


🌊Chapter-13🌊

🇮🇳हल्दीघाटी🇮🇳

🛥श्री श्यामनारायण पाण्डेय🛥

📚हिंदी(काव्य-खण्ड)📚


प्रश्न 1.
मेवाड़-केसरी देख रहा, 
केवल रण का न तमाशा था। 
वह दौड़-दौड़ करता था रण, 
वह मान-रक्त का प्यासा था।
चढ़कर चेतक पर घूम-घूम, 
करता सेना रखवाली था। 
ले महामृत्यु को साथ-साथ 
मानो प्रत्यक्ष कपाली था।

सन्दर्भ- प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के 'काव्य-खण्ड में संकलित कवि-श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित 'हल्दीघाटी' शीर्षक से ली गई हैं।

व्याख्या- उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बताया है कि हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ केसरी अर्थात् राणा प्रताप केवल युद्ध का तमाशा ही नहीं देख रहे थे, यद्यपि वह दौड़-दौड़कर इस प्रकार युद्ध कर रहे थे मानो वह मानसिंह (हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह शत्रु सेना का नेतृत्व कर रहा था) के रक्त के प्यासे हों। 
राणा प्रताप अपने घोड़े चेतक पर सवार होकर अपनी सेना की रखवाली करते हुए इस प्रकार युद्ध कर रहे थे जैसे मानो अपने साथ मृत्यु का प्रलयकारी भीषण रूप लिए साक्षात् महाकाल युद्धभूमि में आ धमका हो।


प्रश्न 2.
चढ़ चेतक पर तलवार उठा, 
रखता था भूतल पानी को। 
राणा प्रताप सिर काट-काट, 
करता था सफल जवानी को। 
सेना-नायक राणा के भी, 
रण देख देखकर चाह भरे। 
मेवाड़ सिपाही लड़ते थे। 
दूने तिगुने उत्साह भरे ॥

व्याख्या- उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि-कह रहे हैं कि जब राणाप्रताप युद्धभूमि में तलवार उठाकर चेतक पर सवार होकर युद्ध करते थे तो ऐसा प्रतीत होता था मानो वह अपने अन्दर भूतल में स्थित पानी अर्थात् असीम शौर्य को धारण कर रहे हों। वह ऐसा पराक्रमी वीर था जो शत्रुसेना के सिर काट-काटकर अपनी जवानी का वास्तविक परिचय देता था।
राणा प्रताप की सेना के कुशल सैनिक राणा प्रताप का रणकौशल देख-देखकर और भी उत्साहित होकर युद्ध कर रहे थे। वे राणा प्रताप के पराक्रम को देखकर दोगुने-तिगुने उत्साह के साथ युद्ध कर रहे थे।


प्रश्न 3.
क्षण मार दिया कर कोड़े से, 
रण किया उतर कर घोड़े से।
राणा रण कौशल दिखा-दिखा, 
चढ़ गया उतर कर घोड़े से। 
क्षण भीषण हलचल मचा मचा, 
राणा-कर की तलवार बढ़ी। 
था शोर रक्त पीने का यह 
रण चण्डी जीभ पसार बढी ॥

व्याख्या- हल्दी घाटी की युद्धभूमि में कवि राणा प्रताप के रण-कौशल को देखकर चकित है। वह उसके कौशल को देखकर कहता है कि राणा प्रताप इस तरह युद्ध कर रहा था कि कहीं वह शत्रु सेना में हाथ के कोड़े से हमला कर देता तो कहीं, घोड़े से उतरकर युद्ध करने लगता था। उसका घोड़े से कहीं उतरकर और कहीं चढ़कर युद्ध करते देखते बनता था।
राणा प्रताप युद्ध स्थल में अपनी तलवार से शत्रुसेना पर जिस ओर हमला कर देता वहीं हाहाकार मच जाता था। शत्रु सेना में इस तरह शोर मच रहा था मानो वहाँ राणा प्रताप नहीं, बल्कि स्वयं महाकाली खड्ग लेकर रक्त पीने के लिए अपनी जीभ पसारकर बढ़ रही हो।


प्रश्न 4.
वह हाथी दल पर टूट पड़ा, 
मानो उस पर पवि छूट पड़ा। 
कट गई वेग से भू, ऐसा
शोणित का नाला फूट पड़ा। 
जो साहस कर बढ़ता उसको, 
केवल कटाक्ष से टोक दिया।
जो वीर बना नभ-बीच फेंक, 
बरछे पर उसको रोक दिया।

व्याख्या- कवि कहता है कि राणा प्रताप शत्रुसेना के हाथीदल पर इस भाँति हमला करता था कि मानों पूर्ण वेग से भाले का वार किया गया हो और उसके वेग से हाथीदल से इस भाँति लहू की धारा फूट पड़ी जैसे भूमि भाले के प्रहार से फट पड़ी हो और उससे जल का धारा बह रहा हो।
कवि कहता है कि यदि कोई शत्रु राणा पर वार करने के लिए साहस करके आगे बढ़ता तो वह केवल राणा की तिरछी निगाह के मात्र से ही वहीं का वहीं रूक जाता था और यदि कोई शत्रु सैनिक हमला भी कर देता तो राणाप्रताप उसे नभ के बीचोंबीच हवा में ही अपने भाले से रोक देता था।


प्रश्न 5. 
क्षण उछल गया अरि घोड़े पर, 
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर। 
बैरी दल से लड़ते-लड़ते, 
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर। 
क्षण में गिरते रुण्डों से, 
मदमस्त गजों के शुण्डों से। 
घोड़ों के विकल वितुण्डों से, 
पट गई भूमि नरमुण्डों से।

व्याख्या- कवि कहता है कि यदि कोई शत्रु राणा प्रताप पर हमला करने के लिए उठा भी तो वह वहीं धाराशायी हो गया अर्थात् राणा प्रताप द्वारा उसे घोड़े पर ही ढेर कर दिया गया। राणा प्रताप शत्रु सेना से लड़ते-लड़ते कभी-कभी अपने घोड़े पर खड़ा भी हो जाता।
इस प्रकार प्रचंड शत्रुओं के विशाल दलों को वह खदेड़-खदेड़ उन पर हमला करता था। राणाप्रताप के हमले से शत्रुओं के धड़ हाथियों की सूड़ों के समान गिर रहे थे। हाथियों और घोड़ों की भयंकर विकलता के कारण युद्धभूमि नरमुण्डों से पटी हुई दिखाई पड़ रही थी।


प्रश्न 6.
ऐसा रण, राणा करता था, 
पर उसको था सन्तोष नहीं। 
क्षण-क्षण आगे बढ़ता था वह, 
पर कम होता था रोष नहीं।
कहता था लड़ता मान कहाँ, 
मैं कर लें रक्त-स्नान कहाँ? 
जिस पर तय विजय हमारी है, 
वह मुगलों का अभिमान कहाँ?

व्याख्या- कवि राणा प्रताप के रण कौशल के बारे में कहता है कि राणा इस तरह भयानक युद्ध करता था कि वह कहीं रुकने का नाम ही नहीं लेता था। वह युद्धभूमि में जैसे-जैसे आगे बढ़ता था, वैसे-वैसे उसका और भी युद्ध का उत्साह बढ़ता जाता था।
राणा प्रताप कहता था कि युद्धभूमि में मानसिंह (मुगल सेना का नेतृत्व करने वाला) उसका मुकाबला नहीं कर सकते हैं। उसके हाथों राणा का शरीर रक्त रंजित हो, यह कदापि नहीं हो सकता। राणा यह पूर्ण विश्वास के साथ कहता है कि युद्ध में विजय उसकी ही होगी, यह पूर्ण निश्चित है। उसके जीते जी मुगल सेना अभिमान प्रकट करे, यह कदापि नहीं हो सकता है।


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