Lesson-9, झाँसी की रानी की समाधि पर

UP Board Class-10 Hindi( काव्य/पद्य खण्ड) Lesson-9, झाँसी की रानी की समाधि पर, कवयित्री- श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान [संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्यगत सौन्दर्य, शब्दार्थ] exam oriented.


✍Chapter-9✍

💂झाँसी की रानी की समाधि पर💂‍♀️

🏟श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान🏟

📚हिंदी(काव्य-खण्ड)📚


झाँसी की रानी की समाधि पर


प्रश्न 1.
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी ।। 
जल कर जिसने स्वतन्त्रता की, दिव्य आरती फेरी ॥ 
यह समाधि, यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की 
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ॥ 
 [2009, 11, 12, 15, 17]

सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के 'काव्य-खण्ड में संकलित श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की कविता 'झाँसी की रानी की समाधि पर' शीर्षक से अवतरित हैं। यह कविता उनके 'त्रिधारा' नामक काव्य-संग्रह से ली गयी है।

व्याख्या:- यह रानी लक्ष्मीबाई की समाधि है। इसमें रानी के शरीर की राख है। रानी ने अपने शरीर का बलिदान देकर यहीं पर स्वतन्त्रता की आरती उतारी थी। यह छोटी-सी समाधि लक्ष्मीबाई के महान् त्याग और देशभक्ति की निशानी है। यही स्थान रानी की जीवन लीला का अन्तिम स्थल है, जहाँ रानी ने पुरुषों जैसी वीरता का प्रदर्शन कर स्वयं का बलिदान कर दिया था।

प्रश्न 2. 
यहीं कहीं पर बिखर गयी वह,भग्न विजय माला-सी 
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी ॥ 
सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला-सी ।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर चमक उठी ज्वाला-सी। 

व्याख्या:- कवयित्री कहती हैं कि अपनी समाधि के आस-पास ही रानी लक्ष्मीबाई टूटी हुई विजयमाला के समान बिखर गयी थीं । युद्धभूमि में अंग्रेजी सेना के साथ बहादुरी से लड़ते हुए रानी के शरीर के अंग यहीं-कहीं बिखर गये थे। इस समाधि में वीरांगना लक्ष्मीबाई की अस्थियाँ एकत्र कर रख दी गयी हैं, जिससे कि देश की भावी पीढ़ी उनके गौरवपूर्ण त्याग बलिदान से प्रेरणा ले सके  कवयित्री कहती हैं कि वीरांगना लक्ष्मीबाई अन्तिम साँस तक शत्रुओं की तलवारों के प्रहार सहती रहीं । जिस प्रकार यज्ञ-कुण्ड में आहुतियाँ पड़ने से अग्नि प्रज्वलित होती है, उसी प्रकार रानी के आत्मबलिदान से आजादी की आग चारों ओर फैल गयी।

प्रश्न 3.
बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से । 
मूल्यवती होती सोने की, भस्म यथा सोने से ॥ 
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी । 
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की, आशा की चिनगारी ॥ [ 2011, 15]

व्याख्या:- कवयित्री कहती हैं कि स्वतन्त्रता पर बलि होने से वीर का सम्मान बढ़ जाता है। रानी लक्ष्मीबाई भी युद्ध में बलिदान हुईं अत: उनका सम्मान उसी प्रकार और भी अधिक बढ़ गया, जैसे कि सोने की अपेक्षा स्वर्णभस्म अधिक मूल्यवान होती है। यही कारण है कि रानी लक्ष्मीबाई की यह समाधि हमें रानी लक्ष्मीबाई से भी अधिक प्रिय है; क्योंकि इस समाधि में स्वतन्त्रता प्राप्ति की आशा की एक चिंगारी छिपी हुई है, जो आग के रूप में फैलकर गुलामी से मुक्त होने के लिए देशवासियों को सदैव प्रेरणा प्रदान करती रहेगी।

प्रश्न 4.
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते । 
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते ॥ 
पर कवियों की अमर गिरा में, इसकी अमिट कहानी 
स्नेह और श्रद्धा से गाती है, वीरों की बानी। [ 2012, 17]

व्याख्या:- कवयित्री कहती हैं कि संसार में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि से भी सुन्दर अनेक समाधियाँ बनी हुई हैं, परन्तु उनका महत्त्व इस समाधि से कम ही है। उन समाधियों पर रात्रि में गीदड़, झींगुर, छिपकली आदि क्षुद्र जन्तु गाते रहते हैं, परन्तु कवियों की अमर वाणी में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि की कभी न समाप्त होने वाली कहानी गायी जाती है। इस समाधि की कहानी को वीरों की वाणी बड़े प्रेम और श्रद्धा के साथ गाती है। अतः यह समाधि अन्य समाधियों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण और पूज्य है।

प्रश्न 5.
बुंदेले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी । 
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी ॥ 
यह समाधि, यह चिर समाधि है, झाँसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है,लक्ष्मी मरदानी की [2016]

व्याख्या:- बुंदेलों और हरबोलों के मुँह से हमने यह गाथा सुनी है कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पुरुषों की भाँति बहुत वीरता से लड़ी। यह अमर समाधि उसी झाँसी की रानी की है। यही उस वीरांगना की अन्तिम कार्यस्थली है।

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