Lesson-8, पुष्प की अभिलाषा, माखनलाल चतुर्वेदी

UP Board Class-10 Hindi( काव्य/पद्य खण्ड) Lesson-8 पुष्प की अभिलाषा, कवि- माखनलाल चतुर्वेदी [ संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्यगत सौन्दर्य, शब्दार्थ] exam oriented.Part-1


✍Chapter-8✍

🌺पुष्प की अभिलाषा🌺

🌹माखनलाल चतुर्वेदी🌹

🌻हिंदी(काव्य-खण्ड)🌻

🎯Part-1🎯




पुष्प की अभिलाषा
प्रश्न 1.
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊँ, 
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, 
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, 
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़े भाग्य पर इठलाऊँ,[ 2009, 13, 15]

सन्दर्भ:- प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के काव्य-खण्ड में संकलित और माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित 'पुष्प की अभिलाषा' शीर्षक कविता से अवतरित है।

व्याख्या:- कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है। मेरी इच्छा यह भी नहीं है कि मैं प्रेमियों को प्रसन्न करने के लिए प्रेमी द्वारा बनायी गयी माला में पिरोया जाऊँ और प्रेमिका के मन को आकर्षित करूं। हे प्रभु! न ही मेरी यह इच्छा है कि मैं बड़े-बड़े राजाओं के शवों पर चढ़कर सम्मान प्राप्त करूं। मेरी यह भी कामना नहीं है कि मैं देवताओं के सिर पर चढ़कर अपने भाग्य पर अभिमान करूं।

प्रश्न 2.
मुझे तोड़ लेना बनमाली, 
उस पथ में देना तुम फेंक ।
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, 
जिस पर जावें वीर अनेक ॥ [ 2009, 13, 15]

व्याख्या:- पुष्प उपवन के माली से प्रार्थना करता है कि हे माली! तुम मुझे तोड़कर उस मार्ग में डाल देना, जिस मार्ग से होकर अनेक राष्ट्र भक्त वीर, मातृभूमि पर अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए जा रहे हों। फूल उन वीरों की चरण-रज का स्पर्श पाकर ही अपने को धन्य मानेगा। 


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