Lesson-4 जाति धर्म और लैंगिक मसले (Caste Religion and Gender issues)

NCERT Notes for CBSE/UP Class-10 Social Science, Civies(लोकतांत्रिक राजनीति -2) Chapter-4 जाति धर्म और लैंगिक मसले(Caste Religion and Gender issues) Notes in Hindi.

💠लोकतांत्रिक राजनीति -2💠

🌺अध्याय=4🌺

🌼जाति धर्म और लैंगिक मसले🌼

🐰(Caste Religion and

 Gender issues) 🐰


💎श्रम का लैंगिक विभाजन:- लिंग के आधार पर काम का बँटवारा। जैसे घर के अंदर के अधिकतर काम औरतें करती हैं। पुरुषों द्वारा बाहर के काम काज किये जाते हैं। एक ओर जहाँ सार्वजनिक जीवन पर पुरुषों का वर्चस्व रहता है वहीं दूसरी ओर महिलाओं को घर की चारदीवारी में समेट कर रखा जाता है।

💎नारीवादी आंदोलन :- महिलाओं के राजीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की माँग और उनके व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन में बराबरी की माँग करने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।

💎नारीवादी आंदोलन की विशेषताएँ :-
• यह आंदोलन महिलाओं के राजनैतिक अधिकार और सत्ता पर उनकी पकड़ की वकालत करता है
• इसमें महिलाओं को घर की चार दीवारी के - भीतर रखने और घर के सभी कामों का बोझ डालने का विरोध सम्मिलित है।
• यह पितृसत्तात्मक परिवार को मातृसत्तात्मक बनाने की ओर अग्रसर हैं।
• महिलाओं की शिक्षा तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों में उनके व्यवसाय सेवा आदि का समर्थक है ।
• यह महिलाओं के हर प्रकार के शोषण का विरोध करता है।
• महिला और पुरुष को समान मजदूरी की माँग करता है। 

💎पितृ प्रधान समाज :- ऐसा समाज जिसमें परिवार का मुखिया पिता होता है और उन्हें औरतों की तुलना में अधिक अधिकार होता है।

💎महिलाओं का दमन/विरोध :-
• महिलाओं में साक्षरता की दर - 54 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में 76 प्रतिशत ।
• ऊँचा वेतन और ऊँची स्थिति के पद पर पुरूष महिलाओं से बहुत आगे हैं।
• असमान लिंग अनुपात अभी भी प्रति 1000 - पुरूषों पर महिलाओं की संख्या 919 है।
• घरेलु और सामाजिक उत्पीड़न।
• जन प्रतिनिधि संस्थाओं में कम भागीदारी अथवा प्रतिनिधित्व।
• महिलाओं में पुरूषों की तुलना में आर्थिक आत्मनिर्भरता कम। 

💎महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व :- भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। जैसे, लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली बार 2019 में ही 14.36 फीसदी तक पहुँच सकी है। राज्यों की विधान सभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 फ़ीसदी से भी कम है। 

💎भारत सरकार के द्वारा नारी असमानता को दूर करने के लिए उठाए गए कदम :- 
• दहेज को अवैध घोषित करना ।
• पारिवारिक सम्पत्तियों में स्त्री पुरुष को बराबर हक। 
• कन्या भ्रूण हत्या को कानूनन अपराध घोषित करना। 
• समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक का प्रावधान। 
• नारी शिक्षा पर विशेष जोर देना ।
• बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं जैसी योजना इत्यादि। 

💎धर्म को राजनीति से कभी अलग नहीं किया जा सकता, महात्मा गाँधी ने ऐसा क्यो कहा:- गांधी जी के अनुसार धर्म, हिंदू धर्म या इस्लाम जैसे किसी भी धर्म विशेष से संबंधित न होकर नैतिक मूल्यों से था जो सभी धर्मों से जुड़े हैं। उनका मानना था कि राजनीति को धर्म से लिए गए नैतिक मूल्यों द्वारा निर्देशित होना चाहिए।

💎साम्प्रदायिकता:- जब किसी धर्म के मानने वाले लोग अपने धर्म को दूसरों के धर्मों से श्रेष्ठ समझने लगते हैं। या
अपने स्वयं के धर्म के प्रति अत्यधिक और पक्षपातपूर्ण लगाव को सांप्रदायिकता कहा जाता है।

💎साम्प्रदायिक राजनीति के विभिन्न रूप :- 
• कट्टर पंथी विचारधारा वाले लोग ।
• धार्मिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण ।
• धर्म के आधार पर लोगों को चुनाव में प्रत्याशी घोषित करना ।
• साम्प्रदायिक हिंसा और खून खराबा ।
• साम्प्रदायिक दिशा में राजनीति की गतिशीलता ।
• साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीतिक दलों का अलग - अलग खेमों में बँट जाना, जैसे- आयरलैंड में नेशलिस्ट और यूनियनिस्ट पार्टी। 

💎साम्प्रदायिकता को दूर करने की विधियाँ:-
शिक्षा द्वारा :- शिक्षा के पाठ्यक्रम में सभी धर्मों को अच्छा है बताया जाए और विद्यार्थियों को सहिष्णुता एवं सभी धर्मों के प्रति आदर भाव सिखाया जाए।
प्रचार द्वारा :- समाचार पत्र रेडियो - टेलीविजन आदि से जनता को धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा दी जाए।

💎धर्मनिरपेक्षता :- ऐसी व्यवस्था जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता। सभी धर्मों को एक समान महत्व दिया जाता है तथा नागरिकों को किसी भी धर्म को अपनाने की आजादी होती है।

💎धर्मनिरपेक्ष शासन :-
• भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता ।
• किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी।
• धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित ।
• शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार।
• संविधान में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव का निषेध किया गया है।

💎भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य बनाने वाले विभिन्न प्रावधान/कारण :- 
• भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं है।
• भारत में सभी धर्मों को एक समान महत्व दिया गया है।
• प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता है।
• भारतीय संविधान धार्मिक भेदभाव को असंवैधानिक घोषित करता है।

💎राजनीति में जाति :-
• चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखना ।
• समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाना। 
• देश के किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है।
• कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट हासिल नहीं कर सकती ।
• राजनीति में जाति पर जोर देने के कारण कई बार यह धारणा बन सकती है कि चुनाव जातियों का खेल है, कुछ और नहीं। 
• अगर किसी चुनाव क्षेत्र में एक जाति के लोगों का प्रभुत्व माना जा रहा हो तो अनेक पार्टियों को उसी जाति का उम्मीदवार खड़ा करने से कोई रोक नहीं सकता। 

💎जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं किये जा सकते (कारण ) :-
• मतदाताओं में जागरूकता कई बार मतदाता - जातीय भावना से ऊपर उठकर मतदान करते हैं।
• मतदाताओं द्वारा अपने आर्थिक हितों और राजनीतिक दलों को प्राथमिकता ।
• किसी एक संसदीय क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत न होना। 
• मतदाताओं द्वारा विभिन्न आधारों पर मतदान करना ।

💎जातिगत असामनता:- जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। ऊँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।

💎अनुसूचित जातियाँ :- वे जातियाँ जो हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में उच्च जातियों से अलग और अछूत मानी जाती हैं तथा जिनका अपेक्षित विकास नहीं हुआ है। अनुसूचित जातियों का प्रतिशत 16.2 प्रतिशत है।

💎अनुसूचित जनजातियाँ :- ऐसा समुदाय जो साधारणतया पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में रहते हैं और जिनका बाकी समाज से अधिक मेलजोल नहीं है। साथ ही उनका विकास नहीं हुआ है। अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत 8.2 प्रतिशत है।

💎भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी है :-
• आज भी हमारे देश में कुछ जातियों के साथ अछूतों जैसा बर्ताव किया जाता है।
• आज भी अधिकतर लोग अपनी जाति या कबीले में विवाह करते हैं।
• कुछ जातियाँ अधिक उन्नत हैं तो कुछ खास जातियाँ अत्यधिक पिछड़ी हुई।
• कुछ जातियों का अभी भी शोषण हो रहा है।
• चुनाव अथवा मंत्रिमंडल के गठन में जातीय समीकरण को ध्यान में रखना।


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