Chapter-4 कृषि(Agriculture)

NCERT Notes for CBSE/UP Class-10 Social Science, (Geography) (Samkalin bharat/समकालीन भारत -2) Chapter-4 कृषि(Agriculture) Notes in hindi.

✍Chapter-4 ✍

🎋🌾कृषि(Agriculture)🌾🎋

🌺कृषि :- कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है।

🌺कृषि प्रणाली/ कृषि के प्रकार :-
• निर्वाह कृषि/प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि
• गहन कृषि/गहन जीविका कृषि
•वाणिज्यिक कृषि
• रोपण कृषि। 

🌺प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि :- ऐसी कृषि प्रणाली जिसमें किसान अपने परिवार का पोषण करने के लिए उत्पादन करता है। इसमें परंपरागत कृषि उपकरणों तथा तरीकों का प्रयोग किया जाता है।

🌺कर्तन दहन प्रणाली/स्थानांतरित कृषि:- किसान जंगल की भूमि के टुकड़े को साफ करके अर्थात् पेड़ काटकर जलाते है, परिवार के जीविका निर्वाह के लिए खेती करते हैं और उस जमीन की उर्वरता कम होने के बाद किसी और जमीन के टुकड़े को साफ करके खेती करते हैं।

🌺गहन जीविका कृषि :- इस पद्धति में अधिक उत्पादन के उद्देश्य से अधिक पूँजी निवेश, आधुनिक उपकरणों, कीटनाशकों, उर्वरकों आदि का प्रयोग किया जाता है। 

🌺वाणिज्यिक कृषि :- इस प्रकार की कृषि के मुख्य लक्षण आधुनिक निवेशों जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त करना है।
कृषि के वाणिज्यीकरण का स्तर विभिन्न प्रदेशों में अलग अलग है। उदाहरण के लिए हरियाणा - और पंजाब में चावल वाणिज्य की एक फसल है परंतु ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।

🌺रोपण कृषि :- यह एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि है जिसमें विस्तृत क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। जिसमें अत्यधिक पूंजी निवेश व श्रम का प्रयोग होता है। भारत में चाय, कॉफ़ी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि मुख्य रोपण फसलें हैं।

🌺कृषि ऋतुए/शस्य प्रारूप :-
भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं, जो इस प्रकार हैं
1. रबी
2. खरीफ
3. जायद

🌺रबी फसलें :- रबी फसलें शीतऋतु में अक्टूबर से दिसबंर के मध्य में बोई जाती हैं और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काट ली जाती हैं। गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों आदि मुख्य रबी फसलें हैं

🌺खरीफ फसलें :- खरीफ फसलें देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ जून- जुलाई में बोई जाती हैं। और सितंबर अक्टूबर में काट ली जाती हैं। खरीफ ऋतु की मुख्य फसलें चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट , मूँगफली और सोयाबीन हैं।

🌺जायद :- रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है। जायद ऋतु में मुख्यत: तरबूज, खरबूजे, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है। गन्ने की फसल को तैयार होने में लगभग एक वर्ष लगता है।

🌺मुख्य फसलें:-

🌺चावल :- चावल भारत के अधिकांश लोगों की मुख्य फसल है। हमारा देश दुनिया में चीन के बाद चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। धान की खेती के लिए जरूरी होते हैं उच्च तापमान (25°C से अधिक) अधिक आर्द्रता और 100 सेमी से अधिक की सालाना वर्षा। यदि सिंचाई की सही व्यवस्था हो तो धान को कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। अब धान की खेती पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी होने लगी है।

🌺गेहू :- गेहूं दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। गेहूँ उगाने के लिए शीत ऋतु और 50 से 75 सेमी की सालाना वर्षा की जरूरत होती है जिसका वितरण समान रूप से हो। गेहूँ के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं: पश्चिम उत्तर के गंगा सतलज के मैदान और दक्कन के काली मृदा वाले क्षेत्र गेहूँ के मुख्य उत्पादक राज्य है- पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ भाग। 

🌺मोटे अनाज :- ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले महत्वपूर्ण मोटे अनाज हैं। इनमें पोषक तत्वों की मात्रा बहुत अधिक है। ज्वार क्षेत्र और उत्पादन के संबंध में तीसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। ज्वार उत्पादक राज्य- महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश। 

🌺बाजरा :- बाजरे को बलुई और उथली काली मिट्टी में उगाया जाता है। राजस्थान बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक है। बाजरे की खेती उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा में भी होती है।

🌺रागी :- रागी को शुष्क प्रदेशों में लाल, काली, बलुआ दोमट और उथली काली मिट्टी में उगाया जाता है। रागी के उत्पादन में महाराष्ट्र पहले नंबर पर है जिसके बाद तमिल नाडु का स्थान है।

🌺मक्का :- मक्का एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग भोजन और चारे दोनों के रूप में किया जाता है। यह एक खरीफ फसल है। पुरानी जलोढ़ मिट्टी में मक्के की पैदावार अच्छी होती है। मक्के की खेती के लिए 21-27°C के बीच के तापमान की जरूरत पड़ती है। , उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश, कर्नाटक मक्के के मुख्य उत्पादक हैं।

🌺दालें :- भारत विश्व में दाल का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। शाकाहारी खाने में दालें सबसे अधिक प्रोटीन दायक होती हैं। तुर (अरहर), उड़द, मूंग, मसूर मटर और चना भारत की मुख्य दलहनी फसले हैं। दालों को कम नमी की आवश्यकता होती है और इन्हें शुष्क परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक दाल के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

🌺खाद्यान्नों के अलावा अन्य खाद्य फसलें:- 

🌺गन्ना :- गन्ने की फसल के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु 21-27°C के बीच का तापमान और 75 cm से 100 cm की वर्षा की जरूरत होती है। गन्ने के उत्पादन में ब्राजील पहले नंबर पर है और भारत दूसरे नंबर पर है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र कर्नाटक, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा गन्ने के मुख्य उत्पादक हैं।

🌺तिलहन :- भारत तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है। मूंगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला, अलसी और सूरजमुखी भारत के मुख्य तिलहन हैं।
दुनिया में मूंगफली का उत्पादन मे चीन(प्रथम), भारत(दूसरा) और सरसों उत्पादन में कनाडा-प्रथम, चीन-दूसरा और भारत दुनिया में तीसरा स्थान पर है। 

🌺चाय :- उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु चाय की फसल के लिये अच्छी होती है। इसके लिए गहरी मिट्टी और सुगम जल निकास वाले ढलवा क्षेत्रों की जरूरत पड़ती है। चाय के उत्पादन में गहन श्रम की आवश्यकता होती है। दार्जीलिंग की पहाड़ियाँ, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल चाय के मुख्य उत्पादक हैं। भारत चाय का सबसे बड़ा उत्पादक है।

🌺कॉफी :- चाय की तरह कॉफी को भी बागानों में उगाया जाता है। भारत में सबसे पहले यमन से अरेबिका किस्म की कॉफी को उगाया गया था। शुरुआत में कॉफी को बाबा बूदन पहाड़ियों में उगाया गया था।

🌺बागवानी फसलें :- महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के आम, नागपुर और चेरापुंजी के संतरे, केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के केले, उत्तर प्रदेश और बिहार की लीची, मेघालय के अनन्नास, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के अंगूर, जम्मू कश्मीर और हिमाचल के सेब, नाशपाती, खूबानी और अखरोट पूरी दुनिया में मशहूर हैं। भारत सब्जियों और फलों का सबसे बड़ा उत्पादक है।

🌺अखाद्य फसलें:- 

🌺रबड़ :- रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है परंतु विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है। इसको 200 सेमी. से अधिक वर्षा और 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में गारो पहाड़ियों में उगाया जाता है। भारत विश्व मे पाॅचवे स्थान पर है। 

🌺कपास :- सूती कपड़ा उद्योग में कपास एक मुख्य कच्चा माल है। भारत कपास का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। कपास की खेती दक्कन पठार के शुष्क भागों की काली मिट्टी में होती है। कपास की अच्छी पैदावार के लिए उच्च तापमान हल्की वर्षा, 210 पाला रहित दिन और तेज धूप की जरूरत होती है। कपास की फसल को पकने में 6 से 8 महीने लगते हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा और उत्तर प्रदेश कपास के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

🌺जूट :- जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है। जूट के लिए अच्छी जल निकासी वाली बाढ़ के मैदानों की उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है। जूट के मुख्य उत्पादक हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा और मेघालय। 

🌺हरित क्रांति :- हरित क्रांति की शुरुआत 1960 और 1970 के दशक में हुई। इस क्रांति का मुख्य उद्देश्य था कृषि उपज को बढ़ाना। इस क्रांति में नई टेक्नॉलोजी और अधिक उपज देने वाली बीजों के इस्तेमाल पर जोर दिया गया। आधुनिक तकनीक, अच्छी खाद/उर्वरकों का प्रयोग करने से कुछ फसलों विशेषकर गेहूँ के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि हुई। 

🌺हरित क्रांति की हानियाँ :- 
•अत्यधिक रसायनों के कारण भूमि का निम्नीकरण
•सिंचाई की अधिकता से जल स्तर नीचा
• जैव विविधता समाप्त हो रही है।
•अमीर और गरीब किसानों के मध्य अंतर बढ़ गया है। 

🌺श्वेत क्रांति :- श्वेत क्रांति की शुरुआत दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिये हुई। देश में दुग्ध उत्पादन में तीव्र वृद्धि से जुड़ी क्रांति को भारत में श्वेत क्रांति कहा जाता है जिसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है। श्वेत क्रांति की अवधि का उद्देश्य भारत को दुग्ध उत्पादन में एक आत्म निर्भर राष्ट्र बनाना था एवम दूध के उत्पादन में वृद्धि के लिए पशुओं की नस्लों को सुधारना था। 

🌺भारत में घटते खाद्य उत्पादन के लिए उत्तरदायी कारण :-
• गैर कृषि उपयोग के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण बोए गए क्षेत्र में कमी।
• रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अधिक उपयोग के कारण उपजाऊ क्षमता में कमी।
• असक्षम तथा अनुचित जल प्रबंधन ने जलाक्रांतता और लवणता की समस्या को उत्पन्न किया ।
• अत्यधिक भूजल दोहन के कारण भौम जल स्तर गिर गया है, इससे कृषि लागत में वृद्धि
• अपर्याप्त भंडारण क्षमता तथा बाज़ार का अभाव। 

🌺भारत में कृषिगत/संस्थागत सुधारों के लिए किए उपाय :- स्वतंत्रता के पश्चात देश में संस्थागत सुधार करने के लिए जोतों की चकबंदी सहकारिता तथा जमींदारी आदि समाप्त करने को प्राथमिकता दी गई। प्रथम पंचवर्षीय योजना में भूमि सुधार मुख्य लक्ष्य पर आधारित हरित क्रांति और श्वेत क्रांति विकास। सूखा, बाढ़, चक्रवात आग तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान किसानों को कम दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना। किसान क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना शुरू। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर किसानों के लिए मौसम की जानकारी और कृषि कार्यक्रम प्रसारित करना । किसानों को बिचैलियों और दलालों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य की सरकार घोषणा करती है।

🌺सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार :-
• फसलों की बीमा सुविधा देना। 
• सहकारी बैंकों का विकास कर किसानों को ऋण सुविधा उपलब्ध कराना। 
• फसलों के समर्थन मूल्य का उचित निर्धारण कर प्रोत्साहित करना। 
• मौसम संबंधी सूचनाओं को समय-समय पर प्रसारित करना। 
• कृषि संबंधी नवीन तकनीक, औजारों, उर्वरकों आदि से संबंधित कार्यक्रम रेडियो तथा दूरदर्शन पर प्रसारित करनाकरना। 


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