चंद वंश की स्थापना 700 ई .
एटकिंसन के अनुसार स्थापना - 953 ई.
अजय सिंह रावत के अनुसार स्थापना - 1018 ई.
संस्थापक- सोमचंद ( 700-721 )
सोमचंद शिव का उपासक था
सोमचंद झुंसी ( प्रयाग ) से आया था
सोमचंद ने ब्रह्मदेव की बेटी से शादी की थी
सोमचंद ने चंपावत में राजबुंगा का किला बनवाया ( यह किला अंडाकार हैं )
सोमचंद ने दूनाकोट का युद्ध लड़ा और वहां के रावत राजा को हराया
सोमचंद ने चाराल का गठन किया ( बोरा , कार्की , चौधरी, तड़ागी )
सोमचंद ने चौथानी ब्राह्मणों की नियुक्ति की
सोमचंद ने जोशियों को दीवान नियुक्त किया
सोमचंद ने सेमल्टी ब्राह्मण राजगुरु नियुक्त किये
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महरा, फर्त्याल, देव, ढेक, करायत
सोमचंद के समय ही पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत हुई
सोमचंद ने मेहरा और फर्त्याल जाति को विशेष महत्व दिया
सोमचंद एक मांडलिक राजा था
( सोमचंद के समय तत्कालीन डोटी नरेश जयदेव मल्ल था )
2 ) आत्मचंद ( 721-740 )
यह कत्यूरीयों का भांजा
3 ) पूर्णचंद ( 741-758 )
4 ) इन्द्रचंद ( 758-778 )
यह एक घमंडी राजा था
इसने रेशम का कारखाना लगवाया था
रेशम बुनकरों को पटुआ कहाँ जाता था
इसके समय पटरंगवाली प्रथा रेशम उत्पादन से संबधित थी
5 ) संसारचंद ( 778-813 )
6 ) सुधाचंद ( 813-833 )
7 ) हमीरचंद या हरिचंद ( 833-856 )
8 ) वीणाचंद ( 856-869 )
यह एक भोग विलासी राजा था
इसके समय कुमांऊ पर खसों का कब्जा हो गया
✓खस शासन ( लगभग 200 वर्ष तक रहा )
पहला खस राजा- बिजड़ था
अंतिम खस राजा - सोपाल था
9 ) वीरचंद ( 1065-1080 )
वीरचंद ने पुनः चंद वंश की स्थापना की
इस राजा का अभिषेक राजबुंगा किले में हुआ था
वीरचंद का सेनापति- श्रीसोन खड़ायन
10 ) रूपचंद ( 1080-1093 )
11 ) लक्ष्मीचंद ( 1093-1113 )
12 ) धर्मचंद ( 1113-21 )
13 ) कर्मचंद ( 1121-40 )
14 ) कल्याण चंद ( 1140-49 )
15 ) निर्भय चंद/नानी चंद ( 1149-70 )
16 ) नरचंद ( 1170-77 )
17 ) नानकी चंद ( 1177-95 )
इसके समय अशोकचल्ल का आक्रमण हुआ ( 1191 में )
अशोकचल्ल के आक्रमण की जानकारी गोपेश्वर और बाड़ाहाट के त्रिशूल लेख से मिलती हैं
18 ) रामचंद ( 1195-1205 )
19 ) भीष्मचंद ( 1205-26 )
20 ) मेघचंद ( 1226-33 )
21 ) ध्यानचंद ( 1233-51 )
22 ) पर्वतचंद ( 1251-61 )
23 ) थोहर चंद ( 1261-75 )
24 ) कल्याण चंद द्वितीय ( 1275-96 )
25 ) त्रिलोकचंद ( 1296-1303 )
इसने छखाता परगना जीता ( नैनीताल )
इसने भीमताल में किला निर्माण करवाया था
26 ) डमरुचंद ( 1303-21 )
27 ) धर्मचंद ( 1321-44 )
28 ) अभयचंद ( 1344-74 )
पहला चंद शासक जिसने अपने अभिलेख उत्कीर्ण करवाये
29 ) ज्ञानचंद या गरुड़ ज्ञानचंद ( 1374-1419 )
सर्वाधिक अवधि तक शासन करने वाला चंद राजा ( 45 वर्ष )
यह दिल्ली जाने वाला पहला राजा था
फिरोजशाह तुगलक ने इसे गरुड़ की उपाधि दी
इस चंद राजा का राजचिन्ह- गरुड़ था
इसका सेनापति नीलू कठायत था
इसने नीलू कठायत को कुमय्या खिल्लत की उपाधि दी थी
नीलू कठायत का दुश्मन - श्रीजस्सा कमलेखी
30 ) हरिहर चंद ( 1419-20 )
31 ) उद्यानचंद ( 1420-21 )
यह गरुड़ ज्ञानचंद का पोता था
इसने एक साल का कर माफ किया
इसने कत्यूरी राजा की बेटी से विवाह किया था
इसके द्वारा चंपावत के बालेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया गया
बालेश्वर मंदिर निर्माण में गुजरात के ब्राह्मण कुंज शर्मा तिवारी का महत्वपूर्ण योगदान रहा
इसने चौगर्खा पर चढ़ाई की और मांडलिक राजा को हराकर चौगर्खा काली कुमाऊं में शामिल किया
32 ) आत्मचंद द्वितीय ( 1421-22 ) 33 )
33 ) हरिहर चंद द्वितीय ( 1422-23 )
34 ) विक्रमचंद ( 1423-37 )
बालेश्वर मंदिर से कुंज शर्मा तिवारी के नाम का ताम्रपत्र ( उद्यानचंद का कार्य पूरा करवाया )
35 ) भारतीचंद ( 1437-50 )
समस्त जातियों की एक सेना बनाने वाला पहला शासक
इसने डोटी से 12 वर्षीय युद्ध लड़ा ( जीता )
यह पहला स्वतंत्र शासक था
इसके समय नायक जाति की उत्पत्ति हुई
जिन स्त्रियों से नायक जाति की उत्पत्ति हुई उन्हें कटकाली कहा जाता था
मृत्यु- 1461 में
36 ) रतनचंद ( 1450-88 )
इस चंद शासक का उल्लेख चंपावत के खेतीखान ताम्र पत्र में मिलता हैं
इसने चंदो का पहला भूमि बंदोबस्त करवाया
इसने पुनः : डोटी से युद्ध किया (इसके समय नागमल्ल का विद्रोह हुआ )
इसने सोर भी जीता था
37 ) कीर्तिचंद ( 1488-1503 )
कीर्तिचंद के गुरु- नागनाथ ( सम्प्रदाय- नाथ सम्प्रदाय )
प्रथम चंद शासक जिसने गढ़वाल पर आक्रमण किया
इसने कुमाऊं - गढ़वाल का बॉर्डर देघाट निर्धारित किया
कीर्तिचंद प्रतापी और युद्ध प्रेमी शासक था
इसने बारामंडल विजय, पाली विजय की तथा फल्दाकोट की लड़ाई लड़ी
कीर्तिचंद के समय में कत्यूर, दानपुर, अस्कोट, सीरा, सोर को शोड़कर सारा कुमाऊं उनके हाथों में आ गया था
38 ) प्रतापचंद ( 1503-17 )
39 ) ताराचंद ( 1517-33 )
40 ) मानिकचंद ( 1533-42 )
इसने सूर वंश के विद्रोही खवास ख़ाँ को शरण दी ( 1541 में )
इस राजा का उल्लेख अब्दुल्ला की तारीख - ए - दाउदी में किया गया है
41 ) कल्याण चंद तृतीय ( 1542-51 )
42 पुनीचंद या पूर्णचंद ( 1551-55 )
43 ) भीष्मचंद ( 1555-60 )
इसने ताराचंद के बेटे बालो को गोद लिया
यह चंपावत से राजधानी आलमनगर ले गया
इसने अल्मोड़ा में खगमरा किले का निर्माण करवाया
इसके समय डोटी राज्य में विद्रोह तथा पाली व स्युनरा में भी राष्ट्र विप्लव हुआ
इसके द्वारा खगमरा कोट के पुराने किले का जीर्णोद्वार किया गया
भीष्मचंद की हत्या खस सरदार गजुवा / खजवूडिंगा द्वारा कर दी गयी
44 ) बालो कल्याण चंद ( 1560-68 )
इसने अल्मोड़ा की स्थापना- 1563 में की
इसने नेलपोखर में महल का निर्माण करवाया ( वर्तमान नाम- पल्टन बाजार )
इसने गंगोली के मणकोटी राजा नारायण चंद को हराया
इसकी पत्नी डोटी के राजा हरिमल्ल की बहन थी
इसे दहेज में सोर राज्य मिला था
45 ) रुद्रचंद ( 1568-97 )
इसके समय में हुसैन ख़ाँ टुकुड़िया का तराई क्षेत्र पर अधिकार हुआ (1569 में , पुनः 1575 ई. में )
रुद्रचंद को अकबर का बुलाया था , रुद्रचंद और अकबर की भेंट 1588 लाहौर में हुई
रुद्रचंद ने अकबर को तिब्बती याक , कस्तूरी , घोड़े आदि तोहफे दिए
रुद्रचंद ने अकबर के कहने पर नागौर की लड़ाई में हिस्सा लिया
रुद्रचंद ने तराई भाबर का पक्का इंतेजाम किया रुद्रपुर नमक नगर बसाया
रुद्रचंद के बीरबल से मधुर संबंध थे
इसके सेनापति- पुरषोत्तम पंत ने रुद्रचंद को सीरा जीता कर दिया था
ग्वालदम ( बधाणगढ़ ) का युद्ध- 1581 में रुद्रचंद तथा बलभद्र शाह , सुकाल देव के बीच
ग्वालदम युद्ध मे पुरषोत्तम पंत मारा गया
रुद्रचंद ने ही अंतिम कत्यूरी राजा सुकाल देव की हत्या की
इसके साम्राज्य का वर्णन विलियम फिंच ने किया हैं
रुद्रचंद ने युवाओं को संस्कृत शिक्षा के लिए बनारस तथा कश्मीर भेजा
रुद्रचंद ने अल्मोड़ा में मल्ला महल बनवाया
इक्फ़ा युद्ध - रुद्रचंद तथा कटेहर के नवाब के बीच हुआ
इसके समय कत्यूरी राज्य का चंद राज्य में विलय हो गया
पुस्तक- धर्म निर्णय, उषारूद्रगोदया
पुत्र- शक्ति गुसांई ( कुमांऊ का धृतराष्ट्र ) और लक्ष्मीचंद
46 ) लक्ष्मीचंद ( 1597-1621 )
यह मानशाह का समकालीन था
इसने गढ़वाल पर 7 बार असफल आक्रमण किये
इसके गढ़वाल पर आठवें प्रयास में गढ़वाली सेनापति ख़तड सिंह मारा गया , उसके बाद ही कुमाऊं खतड़वा त्यौहार शुरू हुआ
संबंधित किला- स्यालबुंगा का किला
इसको लखुली बिराली नाम से भी जाना जाता हैं
लक्ष्मीचंद ने दो कचहरीयों का निर्माण करवाया- न्यौवाली व बिष्टावली
लक्ष्मीचंद ने जहाँगीर से भेंट की ( तुजुक - ए - जहाँगीरी में नाम )
पुत्र- दिलीपचंद , त्रिमलचंद , नारायणचंद , नीला गुसांई
47 ) दिलीपचंद ( 1621-1624 )
क्षय रोग से मरने वाला चंद राजा
48 ) विजयचंद ( 1624-25 )
इसके समय वास्तविक शक्ति- शकराम कार्की , पीरु गुसाईं तथा विनायक भट्ट के हाथो में थी
इसने अपने चाचा नीला गुसांई की आँखे निकलवा दी थी
इसके समय ही त्रिमलचंद चंद को गढ़वाल भागना पड़ा तथा नारायण चंद को डोटी भागना पड़ा
इसने मल्ला महल के दरवाजों का निर्माण करवाया
इसकी हत्या षडयंत्र द्वारा कर दी गई
49 ) त्रिमलचंद ( 1625-38 )
इसने शकराम कार्की व विनायक भट्ट को मरवाया तथा पीरु को देश निकाला दे दिया
इसने नीलू कठायत के वंशज की खोज करवाई
इसने कर्ण कठायत को रसोई का दरोगा नियुक्त किया था
जागेश्वर में इस चंद राजा की भी मूर्ति है ( अन्य मूर्ति- दीपचंद )
त्रिमलचंद ने महीपति शाह से कोसी का युद्ध 1635 ई. में लड़ा
इसने 26 दुमौला के खस राजा पीर सम्मल को हराया
ई सरमन ओकले "होली हिमायल" में लिखते हैं कि इस राजा के नियम रूसी जार से भी कठोर थे।
50 ) बाजबहादुर चंद ( 1638-78 )
ये नीला गुसांई का पुत्र था , इसकी खोज त्रिमलचंद ने करवाई (बाजबहादुर चंद धर्माकर तिवाड़ी के यहाँ से मिला था)
बाजबहादुर चंद तराई की पुनः प्राप्ती के लिए शाहजहां से मिलने गया, शाहजहां ने इसे तराई का जमींदार नियुक्त किया
इसने तराई का प्रबंधन किया , सुरक्षा के लिए बाजपुर की स्थापना की
इसने कुमाऊं में जजिया कर व नमक कर लगये
यह बधानगढ़ से नंदा देवी की मूर्ति लाया तथा अल्मोड़ा के मल्ला महल में मूर्ति स्थापित की
इसने हूणों को हराया
इसने ताकलखाल किले को जीता
हूणों पर सिरती कर लगाया
इसने मानसरोवर यात्रियों के लिए गूंठ भूमि दान देने की शुरूआत की
*गूंठ भूमि- वह भूमि जिसे मंदिरों की देखभाल के लिए पुजारीयों को दान में दिया जाता था
बाजबहादुर चंद अपने को भगवान नारायण का स्वरूप मानता था
उद्योतचंद ने बगावत की तो उसे गंगोली भेज दिया
इसने बागेश्वर में पिन्नाथ मंदिर व भीमताल में भीमेश्वर का निर्माण करवाया
इसने पिथौरागढ़ स्तिथ एक हथिया देवाल बनवाया ( बनावट एलोरा के कैलाश मंदिर जैसी )
इसने जागेश्वर मंदिर में तांबे के पत्र जड़वाये
इसे कुमाऊं का बलबन कहां जाता हैं
इसका छाया चित्र न्यूयॉर्क के ब्रूकलिन म्युजिअम में है
इसका धर्म भाई था- पं नारायण तेवाडी
यह धार्मिक विचारों वाला शासक था , अंतिम समय मे इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई (इसलिए इसे बूढ़ा अत्याचारी शासक भी कहां जाता हैं)
इसने औरंगजेब के दरबार में पर्वत सिंह गुसाईं तथा पंडित विश्वरूप पांडे राजगुरु को राजदूत के रूप में भेजा था
इसने तराई भाबर क्षेत्र का उचित प्रबंध किया तथा माल की हिफाजत के लिए कुछ मुस्लिम सरदार व फौज भी रखी थी
पुत्र- उद्योतचंद , पहाड़सिंह गुसाईं
51 ) उद्योतचंद ( 1678-1698 )
इसने गंगोली से आकर पहले ही वर्ष बधाणगढ़ पर चढ़ाई की , इसका सेनापति मैसी शाहू मारा गया
इसने पार्वतीश्वर और त्रिपुरासुंदरी मंदिर का निर्माण करवाया
इसने तराई में आमों के बगीचे लगवाए
इसे तपस्वी शासक कहा गया है ( रुद्रदत्त पंत द्वारा )
उद्योतचंद ने डोटी के राजा देवपाल से खेरागढी की संधि की
उद्योतचंद ने कुमांऊ में स्थाई छावनीयों की स्थापना करवाई
52 ) ज्ञानचंद द्वितीय ( 1698-1708 )
इसने 1699 में बधाणगढ़ लूटा तथा बधाणगढ़ नंदादेवी की मूर्ति लेकर आया
इसने कत्यूर में बद्रीनाथ मंदिर बनवाया
इसने हवालबाग का नौला बनवाया
53 ) जगतचंद ( 1708-1720 )
इसके काले को कुमाऊं का स्वर्ण काल कहां जाता हैं
इसने फतेहपति शाह को हराया तथा गढ़वाल एक ब्राम्हण को दान किया
इसने हजार गायों का दान किया
इसने जुए पर कर लगाया
इसके जासूस का नाम- विणेश्वर जोशी था
इसकी मृत्यु चेचक से हुई थी
संबंधित पुस्तक- जगत चंद्रिका ( पदम् देव )
54 ) देवीचंद ( 1720-1726 )
एटकिंसन ने इसे कुमांऊ का मोहम्मद बिन तुगलक कहां है
इसे कुमांऊ का रंगीला बादशाह भी कहा जाता हैं
इसे विक्रमादित्य बनने की चाह थी ( बद्रीदत्त पांड )
ताम्रपत्रों में इसका नाम- देवीसिंह
इसने अफगान सेनापति दाऊद ख़ाँ को सेना का प्रधान नियुक्त किया था , इसने मुगलों से टक्कर ली अंत में इसका सेनापति धोखा दे गया
रोहिलों के आक्रमणों की शुरूआत इसी के समय के हुई
षड्यंत्रकारी- मणिकमल्ल और पूरनमल्ल गैड़ा ने सोते हुए देवीचंद की हत्या कर दी थी
इसने हवालबाग में फतेहपुर की स्थापना की
55 ) अजीतचंद (1726-29)
यह राजा माणिकमल्ल और पूरणमल्ल गैंड़ा की कठपुतली बना रहा
इसके समय गुंडागर्दी चरम पर थी
बाद में इसकी भी हत्या कर दी गई
56 ) कल्याण चंद पंचम (1729-1747)
यह अनपढ़ और गरीब था तथा डोटी में मजदूरी करता था
इसने मनिकमल्ल और पुरनमल्ल गैंड़ा को मरवाया
इसने सभी चंदो के वंशजों को मारने का आदेश दे दिया था
इसने लोगो की आंखें निकलवाई कहां जाता हैं लोहे के 7 बर्तन भर गए थे
इसने बीजाड़ के लक्ष्मीपति जोशी के पुत्र शिवदेव जोशी को नौकरी पर रखा, उसे सरबना परगने में कानूनगो नियुक्त किया
कुछ समय बाद शिवदेव जोशी सरबना के सरदार नियुक्त हुए
सन् 1743 में इसके समय रोहिलो का आक्रमण हुआ , रोहीलो ने अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया (7 माह तक) , कल्याण चंद गढ़वाल भाग गया
इसे प्रदीपशाह ने शरण दी तथा अपने खजाने से तीन लाख रुपए रोहिल्ला को दिए
1745 में शिव देव जोशी ने रोहिलों को पूरी तरह खदेड़ दिया
अंतिम समय में इस राजा की आंखें फूट गई
इसने अपना मंदबुद्धि पुत्र दीपचंद, शिव देव जोशी को सौंपा और उसका संरक्षक नियुक्त किया
इसने बिनसर महादेव तथा अंबिका देवी मंदिर बनवाया
57 ) दीपचंद ( 1747-1777 )
इसका सरंक्षक शिवदेव जोशी था
इसी के समय पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ , इसने सेनापति हरिराम के नेतृत्व में सेना भेजी
नजीबुद्दौला ने नजीबाबाद हर्षदेव जोशी को रक्षा के लिए सौंपा
इस राजा को फ्रांसीस हैमिल्टन ने गूंगा शासक कहाँ है
1764 में शिवदेव जोशी की मृत्यु के बाद रानी श्रंगार मंजरी का दखल बढ़ा गया
श्रंगार मंजरी रानी ने मोहन सिंह गुसाईं को सेनापति नियुक्त किया , परमानन्द बिष्ट को दीवान नियुक्त किया
जोशियों का इस्तीफा हुआ , मोहन सिंह गुसांई सर्वेसर्वा हुआ , दिपचंद को जेल में डाल दिया गया
जोशी बंधु ( हर्षदेव जोशी और जयकृष्ण जोशी ) को अलग किया , जयकृष्ण की हत्या करवा दी
हर्षदेव जोशी को मृत्युदंड दिया गया , लालसिंह के कहने पर उम्रकैद
दीपचंद ने जागेश्वर धाम में स्वयं की अष्टधातु मूर्ति स्थापित की
सीराकोट के किले में तड़प तड़प कर दीपचंद की मृत्यु हुई
58 ) मोहनचंद ( 1777-1779 )
यह खूनी शासन था, प्रजा इससे असन्तुष्ट थी
हर्षदेव जोशी ने डोटी और गढ़वाल से मदद मांगी
गढ़ नरेश ललितशाह से बग्वाली पोखर के युद्ध मे मोहन चंद को हराया
ललितशाह ने प्रद्युम्नशाह को दीपचंद का दत्तक पुत्र बना कर गद्दी पर बैठाया ( प्रद्युम्नचंद )
59 ) प्रद्युम्नचंद ( 1779 - 1786 )
मोहनचंद इलाहाबाद गया वहां से नागा साधुओं की सेना लाया , फिर भी पराजित हुआ
प्रद्युम्नचंद के गढ़वाल नरेश और अपने जयकृत शाह से संबंध बिगड़ गए
जयकृत शाह ने षडयंत्रो से दुखी होकर रघुनाथ मंदिर में आत्महत्या कर ली
जयकृत शाह की मृत्यु के बाद प्रद्युम्नशाह गढ़वाल चला जाता हैं और कुमाऊं हर्षदेव जोशी के अधीन हो जाता हैं
मोहनचंद पुनः आक्रमण करता है , हर्षदेव जोशी हार जाता हैं और मोहनचंद एक बार फिर से राजा बन जाता हैं
60 ) मोहनचंद ( 1786-1788 )
दो बार गद्दी पर बैठने वाला एकमात्र राजा
इसके समय हर्षदेव जोशी ने आक्रमण किया , मोहनचंद को बंदी बनाया और लालसिंह गुसांई व उसका भतीजा महेंद्र चंद को रामपुर भेज दिया
हर्षदेव जोशी ने उद्योतचंद के रिश्तेदार शिवसिंह को राजा बनाया
1788 में मोहनचंद को तड़पा तड़पा कर हर्ष देव जोशी द्वारा मार दिया गया
61 ) शिवचंद ( 1788-88 )
इस राजा को मिट्टी का महादेव कहा जाता था
लालसिंह , रामपुर के नवाब की सेना के साथ वापस आया , हर्षदेव जोशी गढ़वाल भागा और गढ़वाल से डोटी गया
मोहनचंद का बेटा महेंद्रचंद को गद्दी पर बैठाया
62 ) महेंद्रचंद ( 1788-90 )
इसके समय में नेपाल के शासक रणबहादुर शाह का कुमाऊं पर अधिकार हो गया, महेंद्रचंद तराई में भाग जाता हैं
1790 से 1815 तक कुमांऊ पर गोरखा शासन रहा , 1815 से 1947 तक ब्रिटिश शासन रहा
हवालबाग का युद्ध- चौतरिया बहादुर शाह,काजी जीत पांडे, अमर सिंह थापा V/S महेंद्रचंद
चंदो की कर नीति
जमीन को कहते थे - थात
जमीन के मालिक को कहते थे - थातवान
खेत में काम करने वाले गुलामों को कहां जाता था- केनी
भू राजस्व एक तिहाई था
कल्याण चंद तृतीय के ताम्रपत्रो से चंद कालीन पर्वतीय गर्खो एवम् माल गर्खो की जानकारी प्राप्त होती हैं
करदाता
खायकर- नगद व अनाज दोनों देता था
सिरतान- नगद कर देता था
चंद काल के प्रमुख कर-
ज्युलिया कर ( सांगा कर) - नदी के पुलो पर लगता था
सिरतीकर -यह एक नगद कर था
कूत- नगद के बदले दिया गया अनाज
मांगा कर- युद्ध के समय लिया जाता था
कटक कर- सेना के लिए लिया जाता था
स्यूक कर- राज सेवको के लिए लिया जाता था
मिझारी कर- कामगारों के लिए लिया जाता था
बजनिया कर- राजा के नृतकों के लिए लिया जाता था
चंदो में नाली शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मिलता है- कल्याण चंद के समय
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