Lesson-11, नदी, केदारनाथ सिंह

UP Board Class-10 Hindi( काव्य/पद्य खण्ड) Lesson-11, नदी, कवि- श्री केदारनाथ सिंह [संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या, काव्यगत सौन्दर्य, शब्दार्थ] exam oriented.


🚢Chapter-11🚢

🏝नदी🏝

🛥श्री केदारनाथ सिंह🛥

📚हिंदी(काव्य-खण्ड)📚


नदी 

प्रश्न 1. 
अगर धीरे चलो 
वह तुम्हें छू लेगी 
दौड़ो तो छूट जायेगी नदी 
अगर ले लो साथ 
वह चलती चली जायेगी कहीं भी 
यहाँ तक कि कबाड़ी की दुकान तक भी।

सन्दर्भ-: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के 'काव्य-खण्ड' में संकलित 'नदी' शीर्षक कविता से लिया गया हैं। इन पंक्तियों के रचयिता श्री केदारनाथ सिंह जी हैं।

व्याख्या-: जिस प्रकार अपनी माँ से हम अपने-आपको अलग नहीं कर सकते, उसी प्रकार हम नदी से भी अपने को अलग नहीं कर सकते। यदि हम सामान्य गति से चलते रहते हैं तो यह हमें स्पर्श करती प्रतीत होती है लेकिन जब हम सांसारिकता में पड़कर भाग-दौड़ में पड़ जाते हैं तो यह हमारा साथ छोड़ देती है। यदि हम इसे साथ लेकर चलें तो यह प्रत्येक परिस्थिति में किसी-न- किसी रूप में हमारे साथ रहती है; क्योंकि यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। न तो वह हमसे अलग हो सकती है और न हम उससे। 

प्रश्न 2.
छोड़ दो
तो वहीं अँधेरे में
करोड़ों तारों की आँख बचाकर
वह चुपके से रच लेगी 
एक समूची दुनिया 
एक छोटे-से घोंघे में 
संचाई यह है 
कि तुम कहीं भी रहो। 
तुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में 
भी प्यार करती है एक नदी। 

व्याख्या-: कवि कहता है कि यदि हम सदा साथ रहने वाली नदी को किसी अनुचित स्थान पर छोड़ दें तो वह वहाँ रुकी नहीं रहेगी वरन् अनगिनत लोगों की आँखों से बचकर वह वहाँ भी अपनी एक नवीन दुनिया उसी प्रकार बसा लेगी जिस प्रकार एक छोटा-सा घोंघा अपने आस-पास सीप की रचना कर लेता है। कवि का कहना है कि हम कहीं पर भी रहें, वर्ष के सबसे कठिन माने जाने वाले ग्रीष्म के दिनों में भी यह हमें अपने स्नेहरूपी जल से सिक्त करती है और अतिशय प्रेम प्रदान करती है।

प्रश्न 3.
नदी जो इस समय नहीं है इस घर में 
पर होगी जरूर कहीं न कहीं 
किसी चटाई या फूलदान के नीचे 
चुपचाप बहती हुई। 

व्याख्या-: कवि कहता है कि जो नदी विभिन्न स्थलों के मध्य से अनवरत प्रवाहित होती रहती है वह किसी-न-किसी रूप में हमारे घरों में भी प्रवाहित होती हुई हमें सुख और आनन्द की अनुभूति देती है। इसके बहने की ध्वनि हमें किसी चटाई या फूलदान से भी सुनाई पड़ सकती है और इसको हम मन-ही-मन अनुभव भी कर लेते हैं।

प्रश्न 4.
कभी सुनना 
जब सारा शहर सो जाय 
तो किवाड़ों पर कान लगा 
धीरे-धीरे सुनना 
कहीं आसपास एक 
मादा घड़ियाल की कराह की तरह 
सुनाई देगी नदी। 

व्याख्या-: कवि कहता है कि यदि आप इस बात से सन्तुष्ट नहीं है कि नदी हमारे-आपके बीच हमेशा विद्यमान रहती है तो अपनी सन्तुष्टि के लिए; जब मनुष्यों के सभी क्रिया-कलाप बन्द हो जाएँ और समस्त प्रकृति शान्त रूप में हो; अर्थात् सारा शहर गहरी निद्रा में सो रहा हो; उस समय आप घरों के दरवाजों से कान लगाकर, एकाग्रचित्त होकर नदी की आवाज को सुनने का प्रयास कीजिए। आपको अनुभव होगा कि नदी की प्रवाहित होने वाली मधुर ध्वनि एक मादा मगरमच्छ की दर्दयुक्त कराह जैसी आती प्रतीत होगी।

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