UP Board Class-10 Hindi (खण्डकाव्य) [गोरखपुर, मुरादाबाद, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, मैनपुरी, मुजफ्फरनगर।]
✴️Class-10✴️
📚Chapter-2📚
🇮🇳मातृभूमि के लिए (खण्डकाव्य)🇮🇳
प्रश्न 1. 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद का संकल्प उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के संकल्प (प्रथम) सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। [2011, 12,17] या
'मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर संकल्प (प्रथम) सर्ग का सारांश लिखिए। [ 2010, 12,15] या
मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर तत्कालीन भारत की स्थिति का वर्णन संक्षेप में कीजिए [2010] या
'मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए कि अंग्रेजों ने भारतवर्ष पर बहुत अत्याचार किये। या
'मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए। [2016, 18]
उत्तर:- प्रथम सर्ग में चन्द्रशेखर आजाद के काशी में छात्र जीवन का प्रसंग है। चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाँवरा ग्राम में हुआ था। बड़े होने पर वे काशी नगरी में संस्कृत पढ़ने गये। उस समय भारत में ब्रिटिश शासन का दमन चक्र चल रहा था। भारतीय जनता के दमन के लिए रॉलेट ऐक्ट बनाया गया था, जिसके अनुसार देशभक्तों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें दण्डित किया जाता था। इस राष्ट्र-विरोधी ऐक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग में एक विशाल सभा आयोजित की गयी थी। वहाँ देशभक्तों के भाषण हो रहे थे, उसी समय जनरल डायर ने वहाँ पहुँचकर गोलियों की बौछार करके निरीह जनता को भून डाला। और कितने ही बेगुनाहों को हथकड़ियाँ डालकर जेल में डाल दिया गया। 150 गज लम्बी सँकरी गली से नर-नारियों को पेट के बल चलाकर यातनाएँ दी गयीं।
अंग्रेजों की उक्त दमन की घटना मर्यादा नामक राष्ट्रीय पत्र में प्रकाशित हुई। इस घटना को पढ़कर चन्द्रशेखर का मुख क्रोध से तमतमा उठा और आँखें करुणा से भर आयीं। उसने संस्कृत सूत्रों को रटना छोड़कर भारत माता को यातना से मुक्ति दिलाने का निश्चय किया और आजाद ने संकल्प लिया कि जब तक वह भारत माता को स्वतन्त्र नहीं करा देगे, तब तक अंग्रेजों से लड़ते रहेगे।
उसी समय महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों का असहयोग करने के लिए आह्वान किया। उनकी एक पुकार पर देशभक्त छात्रों ने विद्यालय तथा राष्ट्रभक्तों ने नौकरी छोड़ दी और स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। चन्द्रशेखर को देशद्रोह के अभियोग में बन्दी बना लिया गया था। मजिस्ट्रेट के द्वारा परिचय पूछने पर उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वाधीन' तथा घर 'जेलखाना' बताया। मजिस्ट्रेट बालक के साहस को देखकर स्तम्भित रह गया। उसने उसे 15 बेंत लगाये जाने का दण्ड दिया। चन्द्रशेखर प्रत्येक बेंत के प्रहार पर 'भारतमाता की जय के नारे लगाता रहा। उसके इस कार्य ने जनता में असीम साहस का संचार किया-
प्रश्न 2. 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर द्वितीय सर्ग (संघर्ष सर्ग) का सारांश (कथावस्तु या कथानक) लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 14, 17]
उत्तर- देश में असहयोग आन्दोलन के मन्द पड़ते ही चन्द्रशेखर का झुकाव शस्त्र क्रान्ति की ओर हो गया। उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम के लिए बमों और पिस्तौलों का निर्माण कराने के लिए धन की आवश्यकता हुई। इन्होंने सरदार भगतसिंह, अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ बख्शी आदि के साथ मिलकर एक मजबूत संगठन बनाया। योजना के अनुसार इन सबने 9 अगस्त, 1925 ई० को काकोरी स्टेशन के पास रेलगाड़ी से सरकारी खजाने को लूटने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। इस काण्ड में पकड़े जाने पर रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी हो गयी. शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास और 15 क्रान्तिकारियों को 3 साल की जेल की सजा हुई, परन्तु चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह सरकार की नजर से बच निकले।
सन् 1928 ई० में साइमन कमीशन भारत में हो रहे स्वाधीनता के झगड़ों की जाँच के लिए आया इस कमीशन के सारे सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन का बहिष्कार करके रोष प्रकट किया गया। लखनऊ में पुलिस की लाठियों से पं० जवाहरलाल नेहरू गिर पड़े, पन्त जी ने ऊपर गिरकर जवाहरलाल नेहरू जी को बचा लिया। लाहौर में कमीशन के विरोध में काले झण्डे लिये प्रदर्शन करते समय पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर पुलिस अफसर स्कॉट ने लाठियों का घातक प्रहार किया, जिससे कुछ ही दिनों के बाद उनका देहान्त हो गया। उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर पूरे देश में शोक की लहर व्याप्त हो गयी।
क्रान्तिकारियों ने अत्याचारों का बदला लेने के लिए 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी का गठन किया। फिरोजाबाद के एक सम्मेलन में आजाद को आर्मी का कमाण्डर इन चीफ बनाया गया। लाहौर में चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और राजगुरु से मिलकर लाला लाजपत राय के हत्यारे पुलिस ऑफिसर स्कॉट को मारने की योजना बनायी। स्कॉट के स्थान पर साण्डर्स मारा गया। इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत पर मानो बिजली गिर पड़ी। सरकार अपनी रक्षा के लिए असेम्बली में जनता रक्षा बिल' लाना चाहती थी, जिसको बिट्ठलभाई पटेल ने मतदान करके पास नहीं होने दिया।
योजना के अनुसार 8 अप्रैल, 1928 ई० को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम गिरा दिया और भारतमाता की जय का नारा लगाते हुए अपने आपको गिरफ्तार कराया। सरकार ने पंजाब की घटना का जुर्म भी क्रान्तिकारियों के मत्थे मढ़कर तीन क्रान्तिकारियों को फाँसी की सजा दे दी। अब संगठन का सारा भार आजाद के कन्धों पर आ गया। वे शासन से अन्याय का बदला लेने की सोचने लगे।
प्रश्न 3. मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर तृतीय सर्ग (बलिदान सर्ग) का सारांश लिखिए। [2010, 11, 13, 14, 15, 16, 17, 18] या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के तीसरे सर्ग के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद के अन्तिम बलिदान के दृश्य का वर्णन कीजिए। या
मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य की किसी एक प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए। [2016] या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के मार्मिक दृश्यों का अंकन कीजिए। या
"मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर उस घटना का वर्णन कीजिए जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो। [2013] या
'चन्द्रशेखर आजाद का जीवन विराट संघर्ष और राष्ट्रप्रेम के उदात्त पक्ष का प्रतीक था।" इस कथन पर प्रकाश डालिए। या
उत्तर- तृतीय सर्ग में आजाद के जीवन के अन्तिम समय की क्रियाशीलता और बाधाओं का वर्णन किया गया है। आजाद फाल्गुन के सुहावने दिनों में ऊषाकाल के समय संघर्ष से थककर अपने मित्र रुद्र के साथ बैठकर भावी संघर्ष की योजना बना रहे थे। मित्रों की याद करके बदला लेने के लिए बार-बार उनका चेहरा तमतमा उठता था। उन्होंने अपने मित्र से कहा कि "अंग्रेजों ने भारतमाता के पुत्रों के खून से उसका आँचल रँग दिया है। इस कृत्य के लिए मैं अंग्रेजों को छोड़ नहीं सकता। आर्मी के संगठन को मजबूत करके क्रान्ति का बिगुल बजाते हुए मुझे अपना दायित्व पूरा करना ही होगा।
एक दिन आजाद फूलबाग की सभा में सशस्त्र क्रान्ति के विरुद्ध एक नेता का भाषण सुन रहे थे। वहीं पर खड़े गणेश शंकर विद्यार्थी ने उनके उत्तेजित मन को शान्त किया और कहा- "देख आजाद नेता की अनजानी बातों को मत सुन। आजाद स्वतन्त्रता की लड़ाई के लिए शासन से अपने आपको सुरक्षित रखना चाहते थे। उन्होंने बताया कि वे प्रयाग जाकर जवाहरलाल नेहरू, पुरुषोत्तम दास आदि मित्रों से मिलकर भावी योजना बनाना चाहते थे और उसके बाद उनका अहमदाबाद जाने का विचार था।
फरवरी, सन् 1931 ई० को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठकर वे कुछ मित्रों से बातें कर रहे थे। उसी समय वहाँ पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। आजाद ने क्षणभर में अपने मित्रों को विदा करके अपनी पिस्तौल में गोलियाँ भरी और पुलिस से मोर्चा लिया। पहली ही गोली मैं उन्होंने एक अफसर का जबड़ा उड़ा दिया। 'आजाद' अकेले ही पुलिस से मोर्चा ले रहे थे। उन्होंने एक घण्टे तक डटकर विशाल पुलिस दल का मुकाबला किया और एक गोली से एस०पी० की कलाई उड़ा दी। वह निरन्तर पुलिस पर गोलियाँ बरसाते रहे, परन्तु जब उस वीर के पास अकेली गोली बची, तो उसे उसने अपनी कनपटी पर मारकर वीरगति प्राप्त कर ली। नॉट बाबर को उनके मरने पर सन्देह था, इसलिए उसने आजाद के तलुवे में गोली मारकर अपना सन्देह दूर किया। आजाद के विस्मयकारी बलिदान से सारा देश स्तब्ध रह गया।
आजाद ने जिस जामुन के पेड़ की ओट लेकर संघर्ष किया था, वह पेड़ भारतीय जनता का पूजास्थल बन गया। अंग्रेज सरकार ने आतंकित होकर उसको भी समूल कटवा दिया।
प्रश्न 4. 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक या सारांश) संक्षेप में लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 17, 18] या
'मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद के जीवन की प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद का जीवन चरित्र संक्षेप में लिखिए। या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद की राष्ट्रनिष्ठा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। [2011]
उत्तर- डॉ० जयशंकर त्रिपाठी द्वारा रचित 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य तीन सर्गों में विभक्त है
1. संकल्प,
2. संघर्ष तथा
3. बलिदान ।
प्रथम सर्ग में चन्द्रशेखर आजाद के काशी में छात्र जीवन का प्रसंग है। चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाँवरा ग्राम में हुआ था। बड़े होने पर वे कोशी नगरी में संस्कृत पढ्ने गये। उस समय भारत में ब्रिटिश शासन का दमन चक्र चल रहा था। भारतीय जनता के दमन के लिए रॉलेट ऐक्ट बनाया गया था। इस राष्ट्र-विरोधी ऐक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग में एक विशाल सभा आयोजित की गयी थी। उसी समय जनरल डायर ने वहाँ पहुँचकर गोलियों की बौछार करके निरीह जनता को भून डाला। अंग्रेजों की उक्त दमन की घटना को पढ़कर किशोर चन्द्रशेखर का मुख क्रोध से तमतमा उठा और आँखें करुणा से भर आयीं। उसने भारतमाता को यातना से मुक्ति दिलाने का निश्चय किया।
उसी समय महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों का असहयोग करने के लिए आह्वान किया। उनकी एक पुकार पर देशभक्त छात्रों ने विद्यालय तथा राष्ट्रभक्तों ने नौकरी छोड़ दी और स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े। चन्द्रशेखर को देशद्रोह के अभियोग में बन्दी बना लिया गया था। मजिस्ट्रेट के द्वारा परिचय पूछने पर उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वाधीन तथा घर 'जेलखाना' बताया। चन्द्रशेखर का साहस ऐसा था कि उसने जनता में असीम साहस का संचार किया।
द्वितीय सर्ग में चन्द्रशेखर आजाद के संघर्ष का वर्णन किया गया है। देश में असहयोग आन्दोलन के मन्द पड़ते ही चन्द्रशेखर का झुकाव शस्त्र क्रान्ति की ओर हो गया। उन्हें स्वतन्त्रता-संग्राम के लिए बमों और पिस्तौलों का निर्माण कराने के लिए धन की आवश्यकता हुई। इन्होंने सरदार भगतसिंह, अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ बख्शी आदि के साथ मिलकर 9 अगस्त, 1925 ई० को काकोरी स्टेशन के पास रेलगाड़ी से सरकारी खजाने को लूटने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। इस काण्ड में पकड़े जाने पर कुछ क्रान्तिकारियों को फाँसी और कुछ को जेल की सजा हुई, परन्तु चन्द्रशेखर आजाद और भगतसिंह सरकार की नजर से बच निकले।
सन् 1928 ई० में साइमन कमीशन भारत में हो रहे स्वाधीनता के झगड़ों की जाँच के लिए आया। इस कमीशन के सारे सदस्य अंग्रेज थे। जहाँ भी यह कमीशन गया, वहीं उसका बहिष्कार और अपमान करके रोष प्रकट किया गया। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर पुलिस अफसर स्कॉट ने लाठियों का घातक प्रहार किया, जिससे कुछ ही दिनों के बाद उनका देहान्त हो गया। चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और राजगुरु से मिलकर लाला लाजपत राय के हत्यारे पुलिस ऑफिसर स्कॉट को मारने की योजना बनायी। स्कॉट के स्थान पर साण्डर्स मारा गया। इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत पर मानो बिजली गिर पड़ी।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम गिरा दिया और भारतमाता की जय का नारा लगाते हुए अपने आपको गिरफ्तार कराया। सरकार ने पंजाब की घटना का जुर्म भी क्रान्तिकारियों के मत्थे मढ़कर तीन क्रान्तिकारियों को फाँसी की सजा दे दी। अब संगठन का सारा भार आजाद के कन्धों पर आ गया। वे शासन से अन्याय का बदला लेने की सोचने लगे।
तृतीय सर्ग में 'आजाद' के जीवन के अन्तिम समय की क्रियाशीलता और बाधाओं का वर्णन किया गया है। आजाद' जब बहुत थक जाते थे, तब वे प्रकृति के बीच जाकर विश्राम करते थे। एक दिन आजाद फूलबाग की सभा में सशस्त्र क्रान्ति के विरुद्ध एक नेता का भाषण सुन रहे थे। वहीं पर खड़े गणेश शंकर विद्यार्थी ने उनके उत्तेजित मन को शान्त किया।
फरवरी, सन् 1931 ई० को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठकर वे कुछ मित्रों से बातें कर रहे थे। उसी समय वहाँ पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। आजाद ने अपनी पिस्तौल में गोलियाँ भरी और पुलिस से मोर्चा लिया। पहली ही गोली में उन्होंने एक अफसर का जबड़ा उड़ा दिया। नॉट बाबर नाम के अंग्रेज एस० पी० की कलाई उड़ा दी। वह निरन्तर पुलिस पर गोलियाँ बरसाते रहे, परन्तु जब उस वीर के पास अकेली गोली बची, तो उससे उसने अपनी कनपटी पर मारकर वीरगति प्राप्त कर ली। आजाद ने जिस जामुन के पेड़ की ओट लेकर संघर्ष किया था, वह पेड़ भारतीय जनता का पूजा स्थल बन गया।
प्रश्न 5. 'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के नायक चन्द्रशेखर आजाद का चरित्र चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 17, 18] या
'मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के नायक आजाद के चरित्र व्यक्तित्व की उल्लेखनीय विशेषताओं का वर्णन कीजिए। या
'मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर नायक के चारित्रिक गुणों (विशेषताओं) का वर्णन कीजिए। [2010, 13, 14, 16, 17] या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद के स्वदेश-प्रेम का वर्णन कीजिए। [2009, 10] या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य के आधार पर उत्कट देशप्रेमी तथा दृढनिश्चयी के रूप में। आजाद का चरित्र चित्रण कीजिए। या
'मातृभूमि के लिए' खण्डकाव्य में 'सूत्रों का रटना छोड़ो, अब स्वतन्त्रता का पाठ पढ़ो का उदघोष करने वाले की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए। या
चन्द्रशेखर आजाद उत्कृष्ट देशप्रेमी थे।" इस कथन की पुष्टि मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर कीजिए। [2011, 18]
उत्तर- डॉक्टर जयशंकर त्रिपाठी द्वारा रचित मातृभूमि के लिए नामक खण्डकाव्य राष्ट्रीय भावना के साक्षात् अवतार एक देशभक्त के बलिदान की गौरव गाथा है । कवि ने प्रस्तुत काव्य में मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों के शौर्य की झाँकी प्रस्तुत करते हुए अमर बलिदानी चन्द्रशेखर आजाद की जीवनगाथा प्रस्तुत की है। वही प्रस्तुत काव्य के नायक हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं--
(1) देशभक्त - चन्द्रशेखर आजाद एक महान् देशभक्त थे। उनका सारा जीवन भारतमाता की स्वाधीनता के लिए संघर्षों में बीता । छात्र जीवन में जलियाँवाला बाग के नृशंस हत्याकाण्ड को पढ़कर उनका हृदय तिलमिला उठा था।
(2) वीर और साहसी - चन्द्रशेखर ने 15 वर्ष की आयु में अंग्रेजी सरकार द्वारा दण्डस्वरूप 16 बेंतों की मार खाते हुए भी प्रत्येक प्रहार के साथ भारतमाता की जय बोलकर अपनी अपूर्व देशभक्ति, साहस और वीरता का परिचय दिया था। अल्फ्रेड पार्क में पुलिस से घिरकर एक घण्टे तक अकेले उसका सामना करते रहना, उनकी वीरता और साहस का ही परिचय है। काकोरी स्टेशन के निकट सरकारी खजाने को लूटना उनका एक बड़ा साहसिक कार्य था।
(3) प्रभावशाली व्यक्तित्व- आजाद का बाह्य और आन्तरिक व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली था। चेहरे पर बड़ी-बड़ी मूंछे, रोबीला चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें, सुगठित हृष्ट-पुष्ट शरीर उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देते थे। जितना उनका शरीर मजबूत एवं सुगठित था, उतना ही उनका स्वभाव मधुर था।
(4) अदभुत संगठनकर्ता- चन्द्रशेखर ने भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए देश के समस्त क्रान्तिकारियों को एक मंच पर संगठित करने का अद्भुत कार्य किया था।
(5) प्रकृति-प्रेमी- आजाद प्रकृति-प्रेमी थे। जब वे संघर्षों से थक जाते थे तो, विश्राम करने के लिए प्रकृति की गोद में चले जाते थे तथा वहीं अपने भावी कार्यक्रम की योजना बनाते थे।
सातोर नदी के इस तट पर, जननी की मुक्ति सोचता है।
शासन की महाशक्ति से वह लड़ने की युक्ति सोचता है।
(6) महान् क्रान्तिकारी- चन्द्रशेखर महान् क्रान्तिकारी देशभक्त थे। अंग्रेजों के दमन चक्र के विरोध में असहयोग आन्दोलन को शिथिल पड़ता देखकर उन्होंने सशस्त्र क्रान्ति का अवलम्बन लिया। उन्होंने भगतसिंह जैसे अन्य क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर क्रान्ति की ज्वाला सर्वत्र भड़का दी। उनका सम्पूर्ण जीवन क्रान्ति और संघर्षों में बीता।
(7) अपराजेय सेनानी- आजाद अपराजेय, निर्भीक स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे कुशल संगठनकर्ता और सेनानायक थे । वे क्रान्तिकारी योजनाओं को बड़ी चतुराई से क्रियान्वित किया करते थे। वे 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के कमाण्डर-इन-चीफ थे।
(8) अमर शहीद- बचपन से ही स्वतन्त्रता की आग को हृदय में बसाये हुए चन्द्रशेखर आजाद ने अंग्रेज सरकार को भयभीत कर दिया था। 27 फरवरी, 1931 ई० को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में उन्होंने अकेले ही अंग्रेज पुलिस से मुकाबला किया और एक सिपाही का जबड़ा तथा अंग्रेज एस० पी० नॉट बाबर की कलाई को गोली से उड़ा दिया। उन्हें जीवित नहीं पकड़ा जा सका था, अपने रिवाल्वर की अन्तिम गोली से उन्होंने अपनी ही लीला समाप्त कर ली। कवि ने उसे हृदयस्पर्शी दृश्य का वर्णन इस प्रकार किया है—
गिर पड़ा वीर पर हिम्मत थी, आने की पास नहीं उनकी ।
कहते थे जीवित होगा यह, क्या जाने गोली कब सनकी ।
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