भारत शासन अधिनियम 1935

भारत शासन अधिनियम - 1935


यह सबसे बड़ा अधिनियम था । इसमें 321 अनुच्छेद, 10 अनुसूचियां तथा 14 भाग थे ।


इस अधिनियम की स्वयं की कोई प्रस्तावना नहीं थी । 1919 के अधिनियम की प्रस्तावना को ही स्वीकार किया गया था ।


इस अधिनियम के द्वारा अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान किया गया था ।


इस अधिनियम को भारत के राजनीतिक एकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण अथवा प्रथम कदम माना जाता है ।


इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त किया गया तथा उसे केंद्र में लागू किया गया था ।

इस अधिनियम के द्वारा केंद्र और राज्यों के बीच विषयों का बंटवारा करते हुए तीन सूचियां बनाई गई-

∆संघ सूची- 59 विषय

∆राज्य सूची- 54 विषय

∆समवर्ती सूची- 36 विषय


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•कुछ अवशिष्ट विषय भी होते थे ऐसे विषय जिनका उल्लेख तीनों अनुसूचियों में नहीं किया था ।


विशिष्ट विषय पर विधि बनाने की शक्ति गवर्नर जनरल को दी गई थी ।


इस अधिनियम के द्वारा पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था की गई थी ।


इस अधिनियम के द्वारा निर्देशों के उपकरण (Instrument of instruction ) का प्रावधान किया गया ।


निर्देशों के उपकरण को वर्तमान संविधान में नीति निदेशक तत्व का कहा जाता है ।


इस अधिनियम के द्वारा बर्मा (वर्ष 1937 में) को भारत से अलग किया गया तथा बर्मा के लिए अलग कानून बनाया गया ।


इस अधिनियम के द्वारा सिंध को मुंबई से अलग किया गया ।


इसके द्वारा बिहार एवं ओडिशा को अलग अलग किया गया ।


इस अधिनियम के द्वारा पहली बार प्रांतों को स्वायत्तता दी गई ।


इस अधिनियम के द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई ।


इस अधिनियम के द्वारा पहली बार संघीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया । जिसकी स्थापना 1937, दिल्ली में हुई तथा इसके प्रथम चीफ जस्टिस मॉरिस गवेयर थे ।


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यह ब्रिटिश संसद द्वारा भारत के लिए बनाया गया सबसे बड़ा अधिनियम था ।


पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 'द डिस्कवरी ऑफ इंडिया' में इस अधिनियम को 'दासता का अधिकार पत्र' कहां है ।


पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिनियम को जिसमें अनेक ब्रेक लगे हुए हैं ।


1935 के अधिनियम के अनुसार पहली बार चुनाव 1937 में हुए थे ।


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