Lesson-3, भूमंडलीकृत विश्व का बनना(The Making of a Global World)

NCERT Notes for CBSE/UP Class-10 Social Science, (History/इतिहास) (Bhart aur samkalin visv/भारत और समकालीन विश्व -2) Chapter-3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना(The Making of a Global World) Notes in hindi.

📚📚पाठ - 3📚📚

🌎भूमंडलीकृत विश्व का बनना🌍

♦वैश्वीकरण :- वैश्वीकरण एक आर्थिक प्रणाली है और व्यक्तियों सामानों और नौकरियों का एक देश से दूसरे देश तक के स्थानांतरण को वैश्वीकरण कहते हैं। 

♦रेशम मार्ग (सिल्क रूट ) :- सिल्क रूट (रेशम मार्ग) एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग था जो कि दूसरी शताब्दी ई० पू० से 14 वीं शताब्दी तक यह चीन, भारत, अरब, ग्रीस और इटली को पीछे छोड़ते हुए एशिया से भूमध्यसागरीय तक फैला था । उस दौरान हुए भारी रेशम व्यापार के कारण इसे सिल्क रूट करार दिया गया था। ये मार्ग एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के साथ साथ विश्व को जमीन और समुद्र मार्ग से जोड़ते थे।

♦रेशम मार्ग (सिल्क रूट) की विशेषताएँ:- 
• सिल्क रूट से होकर चीन के बर्तन दूसरे देशों तक जाते थे।
• इसी प्रकार यूरोप से एशिया तक सोना और चाँदी इसी सिल्क रूट से आते थे।
• सिल्क रूट के रास्ते ही ईसाई, इस्लाम और बौद्ध धर्म दुनिया के विभिन्न भागों में पहुँच पाए थे।
• रेशम मार्गों को दुनिया के सबसे दूर के हिस्सों को जोड़ने वाला सबसे महत्वपूर्ण मार्ग माना जाता था। 
• सिल्क रूट दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों का एक बड़ा स्रोत साबित हुआ।

♦भोजन की यात्रा (स्पेधेत्ती और आलू ) :-
स्पैघेत्ती :- नूडल्स चीन की देन है जो वहाँ से दुनिया के दूसरे भागों तक पहुँचा । भारत में हम इसके देशी संस्करण को वर्षों से इस्तेमाल करते हैं इसी नूडल का इटैलियन रूप है स्पेधेत्ती। 
आज के कई आम खाद्य पदार्थ; जैसे आलू, मिर्च टमाटर, मक्का, सोया, मूंगफली और शकरकंद यूरोप में तब आए जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने गलती से अमेरिकी महाद्वीपों को खोज निकाला। 
आलू :-आलू के आने से यूरोप के लोगों की जिंदगी में भारी बदलाव आए । आलू के आने के बाद ही यूरोप के लोग इस स्थिति में आ पाए कि बेहतर खाना खा सकें और अधिक दिन तक जी सकें। आयरलैंड के किसान आलू पर इतने निर्भर हो चुके थे कि 1840 के दशक के मध्य में किसी बीमारी से आलू की फसल तबाह हो गई तो कई लाख लोग भूख से मर गए। उस अकाल को आइरिस अकाल के नाम से जाना जाता है।

♦विजय, बीमारी और व्यापार(अमेरिका की खोज तथा बहुमूल्य धातुएँ लाना):- सोलहवीं सदी में यूरोप के नाविकों ने एशिया और अमेरिका के देशों के लिए समुद्री मार्ग खोज लिया था। नए समुद्री मार्ग की खोज ने न सिर्फ व्यापार को फैलाने में मदद की बल्कि विश्व के अन्य भागों में यूरोप की फतह की नींव भी रखी। अमेरिका के पास खनिजों का अकूत भंडार था और इस महाद्वीप में अनाज भी प्रचुर मात्रा में था अमेरिका के अनाज और खनिजों ने दुनिया के अन्य भाग के लोगों का जीवन पूरी तरह से बदल दिया। 
सोलहवीं सदी के मध्य तक पुर्तगाल और स्पेन द्वारा अमेरिकी उपनिवेशों की अहम शुरुआत हो चुकी थी। लेकिन यूरोपियन की यह जीत किसी हथियार के कारण नहीं बल्कि एक बीमारी के कारण संभव हो पाई थी। जब यूरोप के लोग अमेरिका पहुँचे तो वे अपने साथ चेचक के जीवाणु भी ले गए। इस का परिणाम यह हुआ कि चेचक ने अमेरिका के कुछ भागों की पूरी आबादी साफ कर दी। इस तरह यूरोपियन आसानी से अमेरिका पर जीत हासिल कर पाए। 

♦अठारहवीं सदी तक भारत और चीन :- अठारहवीं सदी तक भारत और चीन दुनिया के सबसे धनी देश हुआ करते थे लेकिन पंद्रहवीं सदी से ही चीन ने बाहरी संपर्क पर अंकुश लगाना शुरु किया था और दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग थलग हो गया था। चीन के घटते प्रभाव और अमेरिका के बढ़ते प्रभाव के कारण विश्व के व्यापार का केंद्रबिंदु यूरोप की तरफ शिफ्ट कर रहा था। 

♦उन्नीसवीं शताब्दी (1815-1914):- उन्नीसवीं सदी में दुनिया तेजी से बदल रही थी। इस अवधि में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी के क्षेत्र में बड़े जटिल बदलाव हुए। उन बदलावों की वजह से विभिन्न देशों के रिश्तों के समीकरण में अभूतपूर्व बदलाव आए।
अर्थशास्त्री मानते हैं कि आर्थिक आदान-प्रदान तीन प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित हैं :-
1. व्यापार प्रवाह :-  मुख्य रूप से वस्तुओं जैसे कपड़ा या गेहूं का। 
2. श्रम का प्रवाह :- काम या रोजगार की तलाश में लोगों का यहां से वहां जाना। 
3. पूंजी का प्रवाह :- अल्प या दीर्घ अवधि के लिए दूर दराज के इलाकों में निवेश ।

♦विश्व अर्थव्यवस्था का उदय :- अठाहरवीं सदी में यूरोप की जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई। इसके कारण भोजन की माँग में भी भारी इजाफा हुआ। जमींदारों के दबाव के कारण सरकार ने मक्के के आयात पर कड़े नियंत्रण लगा दिए थे। जिन कानूनों के सहारे सरकार ने यह पाबंदी लागू की थी उन्हें "कॉर्न ला" कहा जाता था। इससे ब्रिटेन में भोजन की कीमतें और बढ़ गईं। इसके बाद उद्योगपतियों और शहरी लोगों ने सरकार को कॉर्न लॉ समाप्त करने के लिए बाधित कर दिया।

♦कॉर्न लॉ :- कार्न ला वह कानून था, जिसके सहारे सरकार ने मक्का के आयात पर पाबंदी लगा दी थी। या
इस कानून के तहत ब्रिटेन किसी भी देश से भोज्य पदार्थ का आयात नहीं कर सकता था। 

♦कॉर्न लाॅ के प्रभाव:- कुछ दिन बाद ब्रिटेन में जनसंख्या का बहुत ज्यादा बढ़ गई, जैसे ही जनसंख्या बढ़ी भोजन की मांग में वृद्धि हो गई।भोजन की मांग बढ़ी तो कृषि आधारित सामानों में भी वृद्धि हो गई। इससे पहले की ब्रिटेन में भुखमरी आती, सरकार ने कॉर्न लॉ को समाप्त कर दिया। जिससे अलग अलग देश के व्यापारियों ने ब्रिटेन में भोजन का निर्यात किया ।भोजन की कमी में बदलाव आया और विकास होने लगा।

♦कॉर्न लॉ हटाने के बाद के बदलाव :-
• व्यापार में वृद्धि
• विकास का तेज होना
• भोजन का अधिक भंडार

♦तकनीक का योगदान :- इस दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण में टेकनॉलोजी ने एक अहम भूमिका निभाई। इस युग के कुछ मुख्य तकनीकी खोज हैं रेलवे स्टीम शिप और टेलिग्राफ ,रेलवे ने बंदरगाहों और आंतरिक भूभागों को आपस में जोड़ दिया।

♦उन्नीसवीं सदी के आखिर में उपनिवेशवाद:- एक तरफ व्यापार के फैलने से यूरोप के लोगों की जिंदगी बेहतर हो गई तो दूसरी तरफ उपनिवेशों के लोगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा। जब अफ्रिका के आधुनिक नक्शे को गौर से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि ज्यादातर देशों की सीमाएँ सीधी रेखा में हैं। ऐसा लगता है जैसे किसी छात्र ने सीधी रेखाएँ खींच दी हो।1885 में यूरोप की बड़ी शक्तियाँ बर्लिन में मिलीं और अफ्रिकी महादेश को आपस में बाँट लिया इस तरह से अफ्रिका के ज्यादातर देशों की सीमाएँ सीधी रेखाओं में बन गईं।

♦रिंडरपेस्ट या मवेशी प्लेग :- रिंडरपेस्ट प्लेग की भाँति फैलने वाली मवेशियों(पशुओ) की बीमारी थी। यह बीमारी 1890 ई० के दशक में अफ्रीका में बड़ी तेजी से फैली ।

♦रिंडरपेस्ट का प्रकोप :-रिंडरपेस्ट का अफ्रिका में आगमन 1880 के दशक के आखिर में हुआ था। यह बीमारी उन घोड़ों के साथ आई थी जो ब्रिटिश एशिया से लाए गए थे। ऐसा उन इटैलियन सैनिकों की मदद के लिए किया गया था जो पूर्वी अफ्रिका में एरिट्रिया पर आक्रमण कर रहे थे। 
रिंडरपेस्ट पूरे अफ्रिका में किसी जंगल की आग की तरह फैल गई। 1892 आते आते यह बीमारी अफ्रिका के पश्चिमी तट तक पहुँच चुकी थी। इस दौरान रिंडरपेस्ट ने अफ्रिका के मवेशियों की आबादी का 90% हिस्सा साफ कर दिया। इस तरह से मवेशियों की एक बीमारी ने यूरोपियन को अफ्रिका में अपना उपनिवेश फैलाने में मदद की।

♦बंधुआ मजदूर :- वैसे मजदूर जो किसी खास मालिक के लिए खास अवधि के लिए काम करने को प्रतिबद्ध होते हैं बंधुआ मजदूर कहलाते हैं।
1900 के दशक से भारत के राष्ट्रवादी लोग बंधुआ मजदूर के सिस्टम का विरोध करने लगे थे। इस सिस्टम को 1921 में समाप्त कर दिया गया।

♦भारतीय व्यापार, उपनिवेश और वैश्विक व्यवस्था :-
भारत से उम्दा कॉटन के कपड़े वर्षों से यूरोप निर्यात होते रहे थे। लेकिन इंडस्ट्रियलाइजेशन के बाद स्थानीय उत्पादकों ने ब्रिटिश सरकार को भारत से आने वाले कॉटन के कपड़ों पर प्रतिबंध लगाने के लिए बाध्य किया। इससे ब्रिटेन में बने कपड़े भारत के बाजारों में भारी मात्रा में आने लगे। 1800 में भारत के निर्यात में 30% हिस्सा कॉटन के कपड़ों का था। 1815 में यह गिरकर 15% हो गया और 1870 आते आते यह 3 % ही रह गया। लेकिन 1812 से 1871 तक कच्चे कॉटन का निर्यात 5 % से बढ़कर 35% हो गया। इस दौरान निर्यात किए गए सामानों में नील ( इंडिगो) में तेजी से बढ़ोतरी हुई। भारत से सबसे ज्यादा निर्यात होने वाला सामान था अफीम जो मुख्य रूप से चीन जाता था।

♦भारत से अनुबंधित श्रमिकों का जाना :- आधुनिक बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत और तामिल नाडु के सूखाग्रस्त इलाकों से कई गरीब लोग बंधुआ मजदूर बन गए। इन लोगों को मुख्य रूप से कैरेबियन आइलैंड, मॉरिशस और फिजी भेजा गया । कई को सीलोन और मलाया भी भेजा गया।एजेंट अक्सर झूठे वादे करते थे और इन मजदूरों को ये भी पता नहीं होता था कि वे कहाँ जा रहे हैं। इन मजदूरों के लिए नई जगह पर बड़ी भयावह स्थिति हुआ करती थी।

♦महायुद्धों के बीच अर्थव्यवस्था:- प्रथम विश्व युद्ध मुख्य रूप से यूरोप में लड़ा गया था। प्रथम विश्व युद्ध दो गुटों के बीच लड़ा गया था। एक पर सहयोगी थे ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और बाद में अमेरिका भी शामिल हो गया। और विपरीत दिशा में जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, ओटोमन और तुर्की। यह युद्ध 4 वर्षों तक चला।

♦युद्ध काल की अर्थव्यवस्था :- इस युद्ध मे मशीनगनो, टैंकों, हवाई जहाजों और रासायनिक हथियारों का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। ये सभी चीजें आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थी। पहले विश्व युद्ध ने पूरी दुनिया को कई मायनों में झकझोर कर रख दिया था। लगभग 90 लाख लोग मारे गए और 2 करोड़ लोग घायल हो गये। 
ज्यादातर पुरुषों को युद्ध में शामिल होने के लिए बाध्य होना पड़ा लिहाजा कारखानों में महिलाएं काम करने लगीं। इस युद्ध के बाद दुनिया की कई बड़ी आर्थिक शक्तियों के बीच के संबंध टूट गये। ब्रिटेन को युद्ध के खर्चे उठाने के लिए अमेरिका से कर्ज लेना पड़ा। इस युद्ध ने अमेरिका को एक अंतर्राष्ट्रीय कर्जदार से अंतर्राष्ट्रीय साहूकार बना दिया।

♦युद्ध के बाद के सुधार :- जब ब्रिटेन युद्ध में व्यस्त था तब जापान और भारत में उद्योग का विकास हुआ। युद्ध के बाद ब्रिटेन पर अमेरिका का भारी कर्जा लद चुका था। युद्ध समाप्त होने के बाद माँग में गिरावट आई। युद्ध के बाद ब्रिटेन के 20% कामगारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
अमेरिका की अर्थव्यवस्था में युद्ध के बाद के झटकों से तेजी से निजात मिलने लगी। 1920 के दशक में बड़े पैमाने पर उत्पादन अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मुख्य पहचान बन गई। फोर्ड मोटर के संस्थापक हेनरी फोर्ड मास प्रोडक्शन के जनक माने जाते हैं। बड़े पैमाने पर उत्पादन करने से उत्पादन क्षमता बढ़ी और कीमतें घटी। कार का उत्पादन 1919 में 20 लाख से बढ़कर 1929 में 50 लाख हो गया। इसी तरह से बाजारी सामानों; जैसे रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, रेडियो, ग्रामोफोन, आदि की माँग भी तेजी बढ़ने लगी। इस तरह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था खुशहाल हो गई।

♦महामंदी :- महामंदी की शुरूआत 1929 से हुई और यह संकट 30 के दशक के मध्य तक बना रहा। इस दौरान विश्व के ज्यादातर हिस्सों में उत्पादन, रोजगार, आय और व्यापार में बहुत बड़ी गिरावट दर्ज की गई। युद्धोतर अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर हो गई थी कीमतें गिरीं तो किसानों की आय घटने लगी और आमदनी बढ़ाने के लिए किसान अधिक मात्रा में उत्पादन करने लगे। 

♦भारत और महामंदी :- 
• 1928 से 1934 के बीच देश का आयात निर्यात घट कर आधा रह गया।
• अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने से भारत में गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत तक गिर गई।
• किसानों और काश्तकारों को ज्यादा नुकसान हुआ। 
• महामंदी शहरी जनता एवं अर्थव्यवस्था के लिए भी हानिकारक ।
• 1931 में मंदी चरम सीमा पर थी जिसके कारण ग्रामीण भारत असंतोष व उथल पुथल के दौर - से गुजर रहा था।

♦द्वितीय विश्व युद्ध होने के प्रमुख कारण:- द्वितीय विश्व युद्ध(1सितम्बर1939-2सितम्बर1945) के कई प्रमुख कारण थे। उनमें प्रथम विश्व युद्ध के बाद होने वाली वर्साय संधि की कठोर शर्तें , आर्थिक मंदी, तुष्टीकरण की नीति, जर्मनी और जापान में सैन्यवाद का उदय, राष्ट्र संघ की विफलता आदि कारण प्रमुख हैं

♦विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण युद्धोत्तर काल:- द्वितीय विश्वयुद्ध का परिणाम मानव के लिए आर्थिक रूप से काफी भयावह रहा। यह प्रथम विश्वयुद्ध के दो दशकों के बाद प्रारंभ हो गया। यह युद्ध धुरी शक्तियों, नाजी जर्मनी, जापान और इटली और मित्र राष्ट्रों, ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में कम-से- कम 6 करोड़ लोग (1939 में विश्व की जनसंख्या का लगभग 3%) मारे गए और लाखों लोग घायल हो गए।

♦युद्धोत्तर बंदोबस्त और ब्रेटन वुड्स संस्थान:- युद्ध के आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो मुख्य परिणाम निकाले वे थे। 
1. पहला परिणाम वृहत उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग की आवश्यकता थी। इसके लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने चाहिए थे।
2. दूसरा परिणाम बाहरी दुनिया के साथ आर्थिक संपर्कों से संबंधित था। पूर्ण रोजगार का लक्ष्य पाया जा सकता था, यदि वस्तुओं, पूँजी और श्रम के प्रवाहों को नियंत्रण करने की शक्ति सरकार के पास होती। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई, 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी।

♦IMF(International Monetary Fund) और विश्व बैंक की स्थापना:- सदस्य राष्ट्रों के बाहरी अधिशेष और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (IMF) की स्थापना की।युद्धोत्तर पुनर्निर्माण को वित्त पोषित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक के नाम से जाना जाने वाला) की स्थापना की गई।
IMF तथा विश्व बैंक को ब्रेटन वुड्स संस्थान (ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानें) भी कहा जाता है। विश्व बैंक और आई. एम. एफ. ने वर्ष 1947 से अपना कार्य करना प्रारंभ किया। अमेरिका विश्व बैंक और आई एम एफ के किसी भी फैसले को वीटो' (Veto) कर सकता है।

♦वीटो :- एक कानून या निकाय द्वारा किए गए प्रस्ताव को अस्वीकार करने का संवैधानिक अधिकार ।

♦नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक आदेशNIEO( New International Economic Order) :- ज्यादातर विकासशील देशों को 1950 और 60 के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के तेज विकास से लाभ नहीं हुआ। तब उन्होंने खुद को एक समूह के रूप में संगठित किया। नए अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक आदेश (NIEO) के लिए आवाज उठाई और समूह 77 या G-77 मे संगठित हो गए। 
यह एक ऐसी प्रणाली थी जो उन्हें अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक विकास सहायता मिले, कच्चे माल के लिए उचित मूल्य और विकसित देशों के बाजारों में उनके निर्मित सामानों के लिए बेहतर पहुंच पर वास्तविक नियंत्रण प्रदान करेगी।

♦बहुराष्ट्रीय कंपनियां :- बहुराष्ट्रीय निगम बड़ी कंपनियां हैं जो एक ही समय में कई देशों में काम करती है। विभिन्न सरकारों द्वारा लगाए गए उच्च आयात शुल्क ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी विनिर्माण इकाइयों का पता लगाने के लिए मजबूर किया। 

♦टैरिफ :- एक देश के आयात या निर्यात पर दूसरे देश द्वारा लगाया जानेवाल कर ।

♦विनिमय दरें:- वे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रयोजनों के लिए राष्ट्रीय मुद्राओं को जोड़ती हैं। मोटे तौर पर दो प्रकार की विनिमय दरें हैं निश्चित विनिमय दर और अस्थायी विनिमय दर ।

♦ब्रेटन वुड्स का अंत और वैश्वीकरण की शुरुआत:- 1960 के दशक से अमेरिका की विदेशी भागीदारी की उभरती लागतों ने उसकी वित्तीय और प्रतिस्पर्धी मजबूती को कमजोर कर दिया। सोने के संबंध में अमेरिकी डॉलर अपना मूल्य बनाए न रख सका। अंततः इससे स्थिर विनिमय दर (Fixed Exchange Rate) की व्यवस्था खराब हो गई और अस्थायी विनिमय दर (Floating Exchange Rates) की व्यवस्था शुरू हो गई।

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